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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay in Hindi)

मदर टेरेसा

मदर टेरेसा एक महान महिला और “एक महिला, एक मिशन” के रुप में थी जिन्होंने दुनिया बदलने के लिये एक बड़ा कदम उठाया था। उनका जन्म मेसेडोनिया में 26 अगस्त 1910 में अग्नेसे गोंकशे बोजशियु के नाम से हुआ था। 18 वर्ष की उम्र में वो कोलकाता आयी थी और गरीब लोगों की सेवा करने के अपने जीवन के मिशन को जारी रखा। कुष्ठरोग से पीड़ित कोलकाता के गरीब लोगों की उन्होंने खूब मदद की। उन्होंने उनको आश्वस्त किया कि ये संक्रामक रोग नहीं है और किसी भी दूसरे व्यक्ति तक नहीं पहुंच सकता। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में ‘संत’ की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

मदर टेरेसा पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Mother Teresa in Hindi, Mother Teresa par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 शब्द).

मदर टेरेसा एक महान महिला थी जिनको हमेशा उनके अद्भुत कार्यों और उपलब्धियों के लिये पूरे विश्वभर के लोगों द्वारा प्रशंसा और सम्मान दिया जाता है। वो एक ऐसी महिला थी जिन्होंने उनके जीवन में असंभव कार्य करने के लिये बहुत सारे लोगों को प्रेरित किया है। वो हमेशा हम सभी के लिये प्रेरणास्रोत रहेंगी। महान मनावता लिये हुए ये दुनिया अच्छे लोगों से भरी हुयी है लेकिन हरेक को आगे बढ़ने के लिये एक प्रेरणा की जरुरत होती है। मदर टेरेसा एक अनोखी इंसान थी जो भीड़ से अलग खड़ी दिखाई देती थी।

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया गणराज्य के सोप्जे में हुआ था। जन्म के बाद उनका वास्तविक नाम अग्नेसे गोंकशे बोजाशियु था लेकिन अपने महान कार्यों और जीवन में मिली उपलब्धियों के बाद विश्व उन्हें एक नये नाम मदर टेरेसा के रुप में जानने लगा। उन्होंने एक माँ की तरह अपना सारा जीवन गरीब और बीमार लोगों की सेवा में लगा दिया।

वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। वो अपने माता-पिता के दान-परोपकार से अत्यधिक प्रेरित थी जो हमेशा समाज में जरुरतमंद लोगों की सहायता करते थे। उनकी माँ एक साधारण गृहिणी थी जबकि पिता एक व्यापारी थे। राजनीति में जुड़ने के कारण उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी। ऐसी स्थिति में, उनके परिवार के जीवनयापन के लिये चर्च बहुत ही महत्वपूर्ण बना।

18 वर्ष की उम्र में उनको महसूस हुआ कि धार्मिक जीवन की ओर से उनके लिये बुलावा आया है और उसके बाद उन्होंने डुबलिन के लौरेटो सिस्टर से जुड़ गयी। इस तरह से गरीब लोगों की मदद के लिये उन्होंने अपने धार्मिक जीवन की शुरुआत की। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में ‘संत’ की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

निबंध 2 (300 शब्द)

मदर टेरेसा एक बहुत ही धार्मिक और प्रसिद्ध महिला थी जो “गटरों की संत” के रुप में भी जानी जाती थी। वो पूरी दुनिया की एक महान शख्सियत थी। भारतीय समाज के जरुरतमंद और गरीब लोगों के लिये पूरी निष्ठा और प्यार के परोपकारी सेवा को उपलब्ध कराने के द्वारा एक सच्ची माँ के रुप में हमारे सामने अपने पूरे जीवन को प्रदर्शित किया। उन्हें “हमारे समय की संत” या “फरिश्ता” या “अंधेरे की दुनिया में एक प्रकाश” के रुप में भी जनसाधारण द्वारा जाना जाता है। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में ‘संत’ की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

उनका जन्म के समय अग्नेसे गोंकशे बोज़ाशियु नाम था जो बाद में अपने महान कार्यों और जीवन की उपलब्धियों के बाद मदर टेरेसा के रुप में प्रसिद्ध हुयी। एक धार्मिक कैथोलिक परिवार में मेसेडोनिया के सोप्जे में 26 अगस्त 1910 को उनका जन्म हुआ था। अपने शुरुआती समय में मदर टेरेसा ने नन बनने का फैसला कर लिया था। 1928 में वो एक आश्रम से जुड़ गयी और उसके बाद भारत आयीं (दार्जिलिंग और उसके बाद कोलकाता)।

एक बार, वो अपने किसी दौरे से लौट रही थी, वो स्तंभित हो गयी और उनका दिल टूट गया जब उन्होंने कोलकाता के एक झोपड़-पट्टी के लोगों का दुख देखा। उस घटना ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया था और इससे कई रातों तक वो सो नहीं पाई थीं। उन्होंने झोपड़-पट्टी में दुख झेल रहे लोगों को सुखी करने के तरीकों के बारे में सोचना शुरु कर दिया। अपने सामाजिक प्रतिबंधों के बारे में उन्हें अच्छे से पता था इसलिये सही पथ-प्रदर्शन और दिशा के लिये वो ईश्वर से प्रार्थना करने लगी।

10 सितंबर 1937 को दार्जिलिंग जाने के रास्ते पर ईश्वर से मदर टेरेसा को एक संदेश (आश्रम छोड़ने के लिये और जरुरतमंद लोगों की मदद करें) मिला था। उसके बाद उन्होंने कभी-भी पीछे मुड़ के नहीं देखा और गरीब लोगों की मदद करने की शुरुआत कर दी। एक साधारण नीले बाडर्र वाली सफेद साड़ी को पहनने के लिये को उन्होंने चुना। जल्द ही, निर्धन समुदाय के पीड़ित व्यक्तियों के लिये एक दयालु मदद को उपलब्ध कराने के लिये युवा लड़कियाँ उनके समूह से जुड़ने लगी। मदर टेरेसा सिस्टर्स की एक समर्पित समूह बनाने की योजना बना रही थी जो किसी भी परिस्थिति में गरीबों की सेवा के लिये हमेशा तैयार रहेगा। समर्पित सिस्टरों के समूह को बाद में “मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी” के रुप में जाना गया।

Essay on Mother Teresa in Hindi

निबंध 3 (400 शब्द)

मदर टेरेसा एक महान व्यक्तित्व थी जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा में लगा दिया। वो पूरी दुनिया में अपने अच्छे कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वो हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी क्योंकि वो एक सच्ची माँ की तरह थीं। वो एक महान किंवदंती थी तथा हमारे समय की सहानुभूति और सेवा की प्रतीक के रुप में पहचानी जाती हैं। वो एक नीले बाडर्र वाली सफेद साड़ी पहनना पसंद करती थीं। वो हमेशा खुद को ईश्वर की समर्पित सेवक मानती थी जिसको धरती पर झोपड़-पट्टी समाज के गरीब, असहाय और पीड़ित लोगों की सेवा के लिये भेजा गया था। उनके चेहरे पर हमेशा एक उदार मुस्कुराहट रहती थी।

उनका जन्म मेसेडोनिया गणराज्य के सोप्जे में 26 अगस्त 1910 में हुआ था और अग्नेसे ओंकशे बोजाशियु के रुप में उनके अभिवावकों के द्वारा जन्म के समय उनका नाम रखा गया था। वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। कम उम्र में उनके पिता की मृत्यु के बाद बुरी आर्थिक स्थिति के खिलाफ उनके पूरे परिवार ने बहुत संघर्ष किया था। उन्होंने चर्च में चैरिटी के कार्यों में अपने माँ की मदद करनी शुरु कर दी थी। वो ईश्वर पर गहरी आस्था, विश्वास और भरोसा रखनो वाली महिला थी। मदर टेरेसा अपने शुरुआती जीवन से ही अपने जीवन में पायी और खोयी सभी चीजों के लिये ईश्वर का धन्यवाद करती थी। बहुत कम उम्र में उन्होंने नन बनने का फैसला कर लिया और जल्द ही आयरलैंड में लैरेटो ऑफ नन से जुड़ गयी। अपने बाद के जीवन में उन्होंने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक शिक्षक के रुप में कई वर्षों तक सेवा की।

दार्जिलिंग के नवशिक्षित लौरेटो में एक आरंभक के रुप में उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की जहाँ मदर टेरेसा ने अंग्रेजी और बंगाली (भारतीय भाषा के रुप में) का चयन सीखने के लिये किया इस वजह से उन्हें बंगाली टेरेसा भी कहा जाता है। दुबारा वो कोलकाता लौटी जहाँ भूगोल की शिक्षिका के रुप में सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाया। एक बार, जब वो अपने रास्ते में थी, उन्होंने मोतीझील झोपड़-पट्टी में रहने वाले लोगों की बुरी स्थिति पर ध्यान दिया। ट्रेन के द्वारा दार्जिलिंग के उनके रास्ते में ईश्वर से उन्हें एक संदेश मिला, कि जरुरतमंद लोगों की मदद करो। जल्द ही, उन्होंने आश्रम को छोड़ा और उस झोपड़-पट्टी के गरीब लोगों की मदद करनी शुरु कर दी। एक यूरोपियन महिला होने के बावजूद, वो एक हमेशा बेहद सस्ती साड़ी पहनती थी।

अपने शिक्षिका जीवन के शुरुआती समय में, उन्होंने कुछ गरीब बच्चों को इकट्ठा किया और एक छड़ी से जमीन पर बंगाली अक्षर लिखने की शुरुआत की। जल्द ही उन्हें अपनी महान सेवा के लिये कुछ शिक्षकों द्वारा प्रोत्साहित किया जाने लगा और उन्हें एक ब्लैकबोर्ड और कुर्सी उपलब्ध करायी गयी। जल्द ही, स्कूल एक सच्चाई बन गई। बाद में, एक चिकित्सालय और एक शांतिपूर्ण घर की स्थापना की जहाँ गरीब अपना इलाज करा सकें और रह सकें। अपने महान कार्यों के लिये जल्द ही वो गरीबों के बीच में मसीहा के रुप में प्रसिद्ध हो गयीं। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में संत की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay in Hindi) 100, 200, 300, 500, शब्दों मे -10 lines

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Mother Teresa Essay in Hindi – मदर टेरेसा दुनिया की अब तक की सबसे महान मानवतावादियों में से एक हैं। उनका पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा के लिए समर्पित था। गैर-भारतीय होने के बावजूद उन्होंने अपना लगभग पूरा जीवन भारत के लोगों की मदद करने में बिताया। मदर टेरेसा को अपना नाम चर्च से सेंट टेरेसा के नाम पर मिला। वह जन्म से ईसाई और आध्यात्मिक महिला थीं। वह अपनी पसंद से नन थीं। वह निःसंदेह एक पवित्र महिला थीं जिनमें कूट-कूट कर भरी दया और करुणा थी।  

मदर टेरेसा पर 10 पंक्तियों का निबंध (10 Lines Essay On Mother Teresa in Hindi)

  • 1) मदर टेरेसा एक रोमन-कैथोलिक चर्च की नन और एक परोपकारी महिला थीं।
  • 2) उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को ओटोमन साम्राज्य में हुआ था।
  • 3) बचपन से ही उनमें धार्मिक जीवन जीने की ललक थी।
  • 4) 1929 में वह भारत पहुंची और यहां की नागरिकता अपना ली।
  • 5) अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह दिल के दौरे से पीड़ित थीं।
  • 6) भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1962 में पद्मश्री से सम्मानित किया।
  • 7) उन्हें 1980 में सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न भी मिला।
  • 8) 5 सितंबर 1997 वह दिन था जब उन्होंने आखिरी सांस ली।
  • 9) मदर टेरेसा गरीबों और बीमार लोगों के प्रति अपनी सेवा के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध थीं।
  • 10) उनके नाम पर सड़क, अस्पताल, हवाई अड्डे और सड़कों सहित वैश्विक वास्तुकलाएं हैं।

मदर टेरेसा पर 100 शब्द निबंध (100 words Essay On Mother Teresa in Hindi)

कैथोलिक नन मदर टेरेसा का जीवन पूरी दुनिया में गरीब और कमजोर लोगों की मदद करने के लिए समर्पित था। उनका जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे, मैसेडोनिया में हुआ था। वह 18 साल की उम्र में नन बन गईं और 1929 में भारत आ गईं। वह सेंट मैरी हाई स्कूल में भूगोल पढ़ाने के लिए कलकत्ता आ गईं।

मदर टेरेसा वंचितों और झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों की दुर्दशा से व्यथित थीं। उन्होंने 1950 में अपने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। जरूरतमंदों की मदद के लिए उन्होंने “निर्मल हृदय” की शुरुआत की। उन्हें 1979 का नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 का भारत रत्न मिला। 5 सितंबर 1997 को 87 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा का निधन हो गया।

मदर टेरेसा पर 200 शब्द निबंध (200 words Essay On Mother Teresa in Hindi)

मदर टेरेसा एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शख्सियत हैं जो अपनी करुणा के लिए प्रसिद्ध हैं। जन्म के समय उसका नाम अंजेज़े गोंक्सहे बोजाक्सिउ रखा गया था। उनका जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे, मैसेडोनिया में हुआ था और 18 साल की उम्र में, वह एक भिक्षुणी विहार में शामिल होने के लिए आयरलैंड चली गईं। 1929 में, 19 वर्ष की आयु में, मदर टेरेसा भारत के कलकत्ता आ गईं। वह समाज के वंचित और परित्यक्त सदस्यों की सहायता करना चाहती थी।

योगदान | जब मदर टेरेसा ने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की, तो उन्होंने गरीबों, विकलांगों और असहायों की सेवा करने की पहल की। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज को लौटाने में बिताया। वह दुनिया भर में मानवतावादी उद्देश्य में अपने अद्वितीय योगदान के लिए जानी जाती हैं, जिसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि व्यक्तियों की उनके अंतिम दिनों में देखभाल की जाए और वे सम्मान के साथ इस ग्रह से बाहर निकलें।

सम्मान | मदर टेरेसा को कुछ सबसे प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए। भारत में उन्हें 1962 में पद्मश्री सम्मान दिया गया। 1979 में वह नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय बनीं। 1980 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न भी दिया गया। कलकत्ता की सेंट टेरेसा को 2016 में पोप फ्रांसिस द्वारा मरणोपरांत दिया गया था।

मदर टेरेसा ने अपने कार्यों से प्रेम और सद्भावना फैलायी। उन्होंने अपना सारा जीवन एक साधारण जीवन व्यतीत किया। उसके मन में अपने विश्वास के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता और यीशु मसीह के प्रति भावुक प्रेम था। मदर टेरेसा हर किसी के लिए दयालु होने और जरूरतमंद लोगों की देखभाल करने की प्रेरणा हैं।

मदर टेरेसा पर 300 शब्द निबंध (300 words Essay On Mother Teresa in Hindi)

मदर टेरेसा एक बहुत ही धार्मिक और प्रसिद्ध महिला थीं जिन्हें “गटर की संत” के नाम से भी जाना जाता है। वह दुनिया भर की महान हस्तियों में से एक हैं। उन्होंने भारतीय समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों को पूर्ण समर्पण और प्रेम की सेवा प्रदान करके एक सच्ची माँ के रूप में अपना पूरा जीवन हमारे सामने प्रस्तुत किया था। उन्हें लोकप्रिय रूप से “हमारे समय की संत” या “देवदूत” या “अंधेरे की दुनिया में एक प्रकाशस्तंभ” के रूप में भी जाना जाता है।

उनका जन्म नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहु था जो बाद में अपने महान कार्यों और जीवन की उपलब्धियों के बाद मदर टेरेसा के नाम से प्रसिद्ध हुईं। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मैसेडोनिया में एक धार्मिक कैथोलिक परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा ने कम उम्र में ही नन बनने का निर्णय ले लिया था। वह वर्ष 1928 में एक कॉन्वेंट में शामिल हो गईं और फिर भारत (दार्जिलिंग और फिर कोलकाता) आ गईं।

एक बार, जब वह अपनी यात्रा से लौट रही थीं, तो कोलकाता की एक झुग्गी बस्ती में लोगों की उदासी देखकर उन्हें झटका लगा और उनका दिल टूट गया। उस घटना ने उसके मन को बहुत परेशान कर दिया और कई रातों की नींद हराम कर दी। वह झुग्गी बस्ती में लोगों की तकलीफें कम करने के लिए कुछ उपाय सोचने लगी। वह अपने सामाजिक प्रतिबंधों से अच्छी तरह परिचित थी इसलिए उसने कुछ मार्गदर्शन और दिशा पाने के लिए भगवान से प्रार्थना की।

अंततः 10 सितंबर 1937 को दार्जिलिंग जाते समय उन्हें भगवान से एक संदेश (कॉन्वेंट छोड़ने और जरूरतमंद लोगों की सेवा करने का) मिला। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और गरीब लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया। उन्होंने नीले बॉर्डर वाली सफेद साड़ी की एक साधारण पोशाक पहनने का फैसला किया। जल्द ही, गरीब समुदाय के पीड़ित लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए युवा लड़कियाँ उनके समूह में शामिल होने लगीं। उन्होंने बहनों का एक समर्पित समूह बनाने की योजना बनाई जो किसी भी परिस्थिति में गरीबों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहे। समर्पित बहनों का समूह बाद में “मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी” के नाम से जाना गया।

मदर टेरेसा पर 500 शब्दों का निबंध (500 words Essay On Mother Teresa in Hindi)

विश्व के इतिहास में अनेक मानवतावादी हैं। अचानक मदर टेरेसा लोगों की उस भीड़ में खड़ी हो गईं। वह एक महान क्षमता वाली महिला हैं जो अपना पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंद लोगों की सेवा में बिताती हैं। हालाँकि वह भारतीय नहीं थी फिर भी वह भारत के लोगों की मदद करने के लिए भारत आई थी। सबसे बढ़कर, मदर टेरेसा पर इस निबंध में हम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करने जा रहे हैं।

मदर टेरेसा उनका वास्तविक नाम नहीं था लेकिन नन बनने के बाद उन्हें सेंट टेरेसा के नाम पर चर्च से यह नाम मिला। जन्म से, वह एक ईसाई और ईश्वर की महान आस्तिक थी। और इसी वजह से वह नन बनना चुनती है।

मदर टेरेसा की यात्रा की शुरुआत

चूँकि उनका जन्म एक कैथोलिक ईसाई परिवार में हुआ था, इसलिए वह ईश्वर और मानवता में बहुत बड़ी आस्था रखती थीं। हालाँकि वह अपना अधिकांश जीवन चर्च में बिताती है लेकिन उसने कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन नन बनेगी। डबलिन में अपना काम पूरा करने के बाद जब वह भारत के कोलकाता (कलकत्ता) आईं तो उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। लगातार 15 वर्षों तक उन्हें बच्चों को पढ़ाने में आनंद आया।

स्कूली बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उन्होंने उस क्षेत्र के गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए भी कड़ी मेहनत की। उन्होंने अपनी मानवता की यात्रा एक ओपन-एयर स्कूल खोलकर शुरू की, जहाँ उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। वर्षों तक उन्होंने बिना किसी धन के अकेले काम किया लेकिन फिर भी छात्रों को पढ़ाना जारी रखा।

उसकी मिशनरी

गरीबों को पढ़ाने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के इस महान कार्य के लिए वह एक स्थायी स्थान चाहती हैं। यह स्थान उनके मुख्यालय और एक ऐसी जगह के रूप में काम करेगा जहां गरीब और बेघर लोग आश्रय ले सकेंगे।

इसलिए, चर्च और लोगों की मदद से, उन्होंने एक मिशनरी की स्थापना की, जहाँ गरीब और बेघर लोग शांति से रह सकते हैं और मर सकते हैं। बाद में, वह अपने एनजीओ के माध्यम से भारत और विदेशी देशों में कई स्कूल, घर, औषधालय और अस्पताल खोलने में सफल रहीं।

मदर टेरेसा की मृत्यु एवं स्मृति

वह लोगों के लिए आशा की देवदूत थी लेकिन मौत किसी को नहीं बख्शती। और यह रत्न कोलकाता (कलकत्ता) में लोगों की सेवा करते हुए मर गया। साथ ही उनके निधन पर पूरे देश ने उनकी याद में आंसू बहाये. उनकी मृत्यु से गरीब, जरूरतमंद, बेघर और कमजोर लोग फिर से अनाथ हो गये।

भारतीय लोगों द्वारा उनके सम्मान में कई स्मारक बनाये गये। इसके अलावा विदेशों में भी उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए कई स्मारक बनाए जाते हैं।

निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि शुरुआत में गरीब बच्चों को संभालना और पढ़ाना उनके लिए एक कठिन काम था। लेकिन, वह उन कठिनाइयों को बड़ी ही समझदारी से संभाल लेती है। अपने सफर की शुरुआत में वह गरीब बच्चों को जमीन पर छड़ी से लिखकर पढ़ाती थीं। लेकिन वर्षों के संघर्ष के बाद, वह अंततः स्वयंसेवकों और कुछ शिक्षकों की मदद से शिक्षण के लिए आवश्यक चीजों की व्यवस्था करने में सफल हो जाती है।

बाद में, उन्होंने गरीब लोगों को शांति से मरने के लिए एक औषधालय की स्थापना की। अपने अच्छे कामों के कारण वह भारतीयों के दिल में बहुत सम्मान कमाती हैं।

मदर टेरेसा निबंध पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

मदर टेरेसा ने दुनिया को कैसे बदला.

मदर टेरेसा ने अपने विभिन्न मानवीय प्रयासों से दुनिया को बदल दिया और सभी को दान का सही अर्थ दिखाया।

मदर टेरेसा ने समाज में कैसे योगदान दिया?

मदर टेरेसा ने अपना जीवन मानव जाति की सेवा के लिए समर्पित कर दिया और उन्होंने गरीबों और बीमार लोगों की मदद के लिए मिशनरीज ऑफ चैरिटी, एक रोमन कैथोलिक मण्डली की स्थापना की।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय | About Mother Teresa in Hindi | Mother Teresa Biography in Hindi

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मदर टेरेसा का जीवन परिचय Mother Teresa Biography in Hindi

जिंदगी उसी की जिसकी मौत पर जमाना अफसोस करें। यूं तो हर शख्स आता है, दुनियाँ में मरने के लिए। ऐसे बहुत से चेहरे आते-जाते रहते हैं। लेकिन लोगों के दिलों पर वही राज करते हैं। जिन्होंने इस देश और समाज के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। अपनी एक अलग पहचान बनाई। देश व समाज को एक अलग दिशा दी। ऐसे ही अगर आप से कहा जाए कि दो शब्द हैं- दया और निस्वार्थ भाव।

सबसे पहले आपके जेहन में क्या आता है। सच ही कहा जाता है कि अपने लिए तो सब जीते हैं। लेकिन जो अपने स्वार्थ को पीछे छोड़ कर, दूसरों के लिए काम करता है। दूसरों के लिए जीता है। वही महान होता है। आज आप जानेंगे। ऐसी ही एक शख्सियत के बारे में। जिनका नाम है- मदर टेरेसा । यह भारत की नहीं होने के बावजूद, भारत आई। यहां के लोगों से असीम प्रेम कर बैठी। यहीं रहकर उन्होंने आगे का अपना जीवन बिताया। उन्होंने बहुत से महान कार्य किये।

मदर टेरेसा का नाम जेहन में आते ही, हम सभी के मन व हृदय में श्रद्धा का भाव उमड़ पड़ता है। हमारे चेहरो पर एक विशेष चमक आ जाती है। वह एक ऐसी महान व पवित्र आत्मा थी। जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन दुनियाँ भर के दीन-दुखी, बीमार-असहाय और गरीबों के उत्थान में समर्पित कर दिया। यही कारण है कि सारे विश्व मे उन्हें श्रद्धा व प्रेम की मौत मूर्ति के रूप में देखा जाता है। इसी प्रकार जाने : Founder of Microsoft – Bill Gates के सफलता की पूरी कहानी।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय

Mother Teresa – An Introduction

 
एग्नेस गोंझा बोयजीजु(Agnes Gonxha Bojaxhiu)

• कलकत्ता की संत टेरेसा
26 अगस्त 1910
उस्कुब, उस्मान साम्राज्य
(वर्त्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य)
निकोला बोयजीजु (व्यवसाई)
द्रनाफिले बोयजीजु
आगा बोयजीजु
लाज़र बोयजीजु
रोमन कैथोलिक ईसाई
• अल्बेनियाई रोमन कैथोलिक नन 
• Missionaries of Charity की स्थापना
मानव व समाज सेवा करना
अविवाहित
• उस्मान (1910-1912)
• सर्बिया (1912-1915)
• बुल्गारिया(1915-1918)
• यूगोस्लाविया (1918-1948) 
• भारत (1948-1997)
• अल्बेनिया (1991-1997)
• पद्मश्री (1962)• भारत रत्न (1980)
• नोबेल पुरस्कार (1979) 
• ईयर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर(1985)
5 सितंबर 1997
कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत

  मदर टेरेसा का प्रारम्भिक जीवन

 मदर टेरेसा का पूरा नाम एग्नेस गोंझा बोयजीजु (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को हुआ था। इनका जन्म Skopje, जो कि अब Republic of Macedonia की राजधानी में हुआ था। यह एक अल्बेनियन भारतीय महिला थी। उनके पिताजी का नाम निकोला बोयजीजु था। वह एक साधारण व्यवसायी थे। उनकी माता का नाम द्रनाफिले बोयजीजु था। वह एक पवित्र, दयालु और गरीबों की खिदमत करने वाली महिला थी।

एग्नेस बचपन से ही बहुत शांत, सुलझी और लोगों की मदद करने का स्वभाव रखती थी। उनके पिता स्थानीय चर्च के साथ-साथ, शहर की राजनीति में गहराई से शामिल थे। एग्नेस अपने पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी थी। उनके जन्म के समय, उनकी बड़ी बहन आगा बोयजीजु उम्र 7 साल थी। जबकि बड़े भाई लाज़र बोयजीजु उम्र 2 साल थी। Mother Teresa के दो भाई छोटी उम्र में ही गुजर गए थे।

1919 में, उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। तब वह मात्र 9 साल की थी। उनके पिता के बिजनेस पार्टनर kool, पूरा पैसा लेकर फरार हो गए। उसी समय world war। का दौर खत्म हुआ था। जिसकी वजह से, उनके परिवार पर आर्थिक तंगी का बोझ बढ़ गया। इसके बाद उनकी व पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी मां द्रना पर आ गई। इसके लिए उन्होंने कपड़े सिलना व एंब्रॉयडरी का काम शुरू किया।

एग्नेस बचपन से ही सुंदर और परिश्रमी लड़की थी। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा एक कान्वेंट स्कूल से ली। उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ, गाना भी बेहद पसंद था। वह और उनकी बहन, पास के गिरजाघर में मुख्य गायिका थी। इसी प्रकार जाने : Sindhutai Sapkal Biography in Hindi । शमशान की रोटी से सम्मान तक। 

मदर टेरेसा – नन बनने का संकल्प

 ऐसा माना जाता है कि जब वह मात्र 12 साल की थी। तब वे Letnica से church of Black Madonna की धार्मिक यात्रा में शामिल हुई। जिसके कारण में धार्मिक जीवन की ओर, एक अद्भुत झुकाव महसूस हुआ। तभी उन्हें यह अनुभव हो गया था। वह अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी।

एग्नेश का धार्मिक जीवन से लगाव, इतना बढ़ता चला गया। वे हाईस्कूल से ग्रेजुएट होने तक 18 साल की हो चुकी थी। इसके बाद उन्होंने नन बनने की ठान ली। नन बनने के लिए कई तरह के वचन लेने पड़ते हैं। जिनमें कभी शादी न करना। सच्चाई की राह पर चलना। वफादार रहना। जरूरतमंदों की मदद करना आदि शामिल है। इसमें उनके परिवार के माहौल का भी, एक बड़ा योगदान था।

एग्नेस को नन बनने के लिए Father Franzo Zamric ने प्रोत्साहित किया था। उनका कहना था कि लोगों की सेवा करने के लिए, हमें अपनी सुख-सुविधाओं का त्याग करना चाहिए। दुनिया की मोह माया की चीजों को छोड़कर कर ही। हम गरीबों की सेवा पूरे दिल से कर सकते हैं। फादर की यह बात एग्नेस को बहुत ज्यादा प्रभावित कर गई। उन्होंने दुनिया की सारी चीजों को त्याग कर, नन बनने की दिशा में कदम उठा लिया।

मदर टेरेसा – सिस्टर्स ऑफ लोरेंटों मे शामिल

  18 साल की उम्र में उन्होंने ‘ सिस्टर्स ऑफ लोरेटो ‘ में शामिल होने का फैसला कर लिया। इसके बाद, वह आयरलैंड गई। लंको अपनी मनपसंद फ्रेंड के ऊपर नाम रखने का मौका दिया जाता है यही वह समय था। जब उन्होंने अपना नाम Lisieux St. Therese से प्रभावित होकर Mary Teresa रख लिया।

आयरलैंड में उन्होंने सबसे पहले अंग्रेजी भाषा सीखी। वह भारत के बारे में सुनकर बहुत प्रभावित थी। लोरेटो की सिस्टर, अंग्रेजी भाषा में ही भारत के बच्चों को पढ़ाती थी। इसलिए उनका अंग्रेजी सीख सीखना जरूरी था।

भारत मे मदर टेरेसा का आगमन

Sister Teresa आयरलैंड से 6 जनवरी 1929 को Kolkata में Loreto Convent पहुँची। यहां पर उनकी training शुरू हुई। जिसके तहत, उन्हें सेंट मैरी स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने का काम सौंपा गया। यह स्कूल लोरेटो सिस्टर द्वारा संचालित था। जिसे शहर की सबसे गरीब लड़कियों को पढ़ाने के लिए संचालित किया जा रहा था।

मदर टेरेसा को यहाँ history और geography पढ़ानी थी। इसके लिए उन्होंने फर्राटेदार हिंदी और बांग्ला बोलना सीखा। Mother Teresa ने अपने आप को समर्पित कर दिया। गरीब बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ, उन सभी बच्चों के जीवन से गरीबी दूर करने के लिए।

24 मई 1937 को Mother Teresa ने अंतिम प्रतिज्ञा ली। गरीबी, शुद्धता और आज्ञाकारिता के जीवन के लिए। जैसी कि लोरेटो नन की प्रमुख प्रथा थी। उन्हें अपनी अंतिम प्रतिज्ञा लेने के बाद ‘मदर’ की उपाधि दी जाती थी। मैरी टेरेसा ने भी अपनी प्रतिज्ञा लेने के बाद, मदर की उपाधि धारण की।

इसके बाद से, उन्हें पूरे विश्व मे Mother Teresa के नाम से जाना जाने लगा। मदर टेरेसा ने सेंट मैरी स्कूल में, अपना अध्यापन कार्य जारी रखा। Mother Teresa सन 1944 में सेंट मैरी स्कूल की principle बन गई। इसी प्रकार जाने : Kailash Satyarthi ऐसे समाजसेवी, जो लाखों बच्चों मे एक उम्मीद की किरण है।

मदर टेरेसा – समाज व मानव सेवा की प्रेरणा

एक बार मदर टेरेसा ट्रेन से, दार्जिलिंग जा रही थी। तभी उन्हें ट्रेन में, कुछ देर के लिए आंख लग गई। उन्हें महसूस हुआ कि एक तेज रोशनी के साथ, ईश्वर उनके सामने प्रकट होते हैं। वह उनसे कहते हैं। वह सही रास्ते पर चल रही हैं। बहुत से लोगों को उनकी मदद की जरूरत है। इस सपने के बाद, जब उनकी आंख खुली। तब उनका विश्वास और भी गहरा होता चला गया।

मदर टेरेसा ने निश्चय कर लिया। अब उन्हें पूरा जीवन सेवा ही करनी है। उन्होंने तय किया कि अब वह स्कूल छोड़कर। कोलकाता के सबसे गरीब तबके की स्लम में जाकर मदद करेंगी। लेकिन उन्होंने वह कॉन्वेंट की तरफ से वफादारी का वचन ले रखा था। इसलिए बिना उनकी इजाजत के, वे इसे छोड़ भी नहीं सकती थी।

भारत – पाकिस्तान बँटवारे का प्रभाव

 मदर टेरेसा ने 1947 में, भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान। हिंदू मुस्लिमो की सैकड़ो लाशों को, सड़को व गटर में सिर्फ पड़े हुए ही नहीं देखा। बल्कि इंसानियत की हत्याएं होते हुए भी देखी। इन सबको देखकर, वह स्तब्ध रह गई। वह गरीबों के लिए, तो काम करती ही थी। बच्चों से भी उनका लगाओ गजब का था। उनका मानना था कि बच्चे ईश्वर का रूप होते हैं।

इसलिए उन्होंने बंटवारे के दौरान, जो बच्चे अपने परिवार से बिछड़ गए थे। उन्हें एक जगह पर लाकर रखा। उनके खाने-पीने का पूरा प्रबंध किया। 1948 में उन्हें सेंट मैरी स्कूल छोड़ने की official permission भी मिल गई। उसके बाद से, उन्होंने नीली बॉर्डर वाली साड़ी पहनने की शुरुआत की। उन्होंने 6 महीने की बेसिक मेडिकल ट्रेनिंग ली।

इसके बाद, वह कोलकाता के स्लम में बेसहारा, बेघर, बिछड़े लोगों और बच्चों की सेवा करने के लिए वहां चली गई। मदर टेरेसा ने इस शहर के गरीब लोगों की मदद करने के लिए ठोस कदम उठाए। उन्होंने ओपन ईयर स्कूल खोला। जर्जर हो चुकी इमारतों में रहने वाले लोगों के लिए, घर की स्थापना की। इसने शहर की सरकार को, मदद करने के लिए मजबूर कर दिया।

मदर टेरेसा – Missionaries of Charity की स्थापना

अक्टूबर 1950 में, उन्हें मिशनरीज ऑफ चैरिटी को खोलने की मान्यता मिल गई। जिसे उन्होंने चुनिंदा सदस्यों की मदद से स्थापित किया। इसमें ज्यादातर रिटायर्ड शिक्षक और सेंट मैरी स्कूल के छात्र थे। जैसे-जैसे मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की बात फैलती गई। वैसे-वैसे ही पूरे देश और दुनिया से पैसा इकट्ठा होना शुरू हो गया।

Mother Teresa की मदद का दायरा भी तेजी से बढ़ने लगा। साल 1950 और 60 के दशक के दौरान कॉलोनी, अनाथालय, नर्सिंग होम, पारिवारिक क्लीनिक, मोबाइल फ़ास्ट क्लीनिक की स्थापना की।

फरवरी 1965 को Pope Paul Vl ने मिशनरीज आफ चैरिटी व मदर टेरेसा की प्रशंसा की। इसके बाद से, मदर टेरेसा और मिशनरीज ऑफ चैरिटी की दुनिया भर में चर्चा होने लगी। 1971 तक मदर टेरेसा ने अमेरिका में पहला जानकर खोला जान घर खोलने के लिए नियर की यात्रा की। इसी प्रकार जाने : नीम करोली बाबा की कहानी । नीम करोली बाबा के चमत्कार (पूर्ण जानकारी)।

मदर टेरेसा को पुरस्कार व सम्मान

Pope Paul Vl से मिली वाहवाही, तो एक शुरुआत मात्र थी। उनके बिना थके और बिना रुके। लोगों की निस्वार्थ भाव से मदद करने के लिए, उन्हें बहुत सारे सम्मान दिए गए। उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान, “भारत रत्न” से भी नवाजा गया। इसके बाद सोवियत संघ की शांति समिति की ओर से, स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।

1979 में मदर टेरेसा को उनके काम के लिए, नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस पुरस्कार के साथ, उन्हें $1,90,000 का चेक भी दिया गया। जिसकी भारतीय रुपए में 1 करोड़ 41 लाख की रकम होती है। इस पूरी रकम को, उन्होंने गरीबों की सेवा में लगा दिया।

1982 में Mother Teresa Lebanon के शहर Beirut में गई। यहां उन्होंने मुस्लिम और ईसाई धर्म के बेसहारा व असहाय बच्चों के लिए, सहायता गृह का निर्माण करवाया। यहां से वह 1985 में न्यूयॉर्क लौट आई। संयुक्त राष्ट्र सभा की 40वीं वर्षगांठ पर, ओजपूर्ण भाषण दिया। यहां रहकर, उन्होंने HIV Aids से पीड़ित लोगों के लिए। एक होम क्लीनिक भी खुलवाया।

मदर टेरेसा की म्र्त्यु

मदर टेरेसा की उम्र जैसे-जैसे बढ़ती गई। वैसे-वैसे ही उनकी सेहत गिरती चली गई। फिर धीरे-धीरे एक ऐसा समय भी आया। जब वह ह्रदय, फेफड़े व किडनी की समस्याओं के साथ। एक लंबे समय तक बीमार रही। फिर 87 वर्ष की उम्र में, सितंबर 1997 को, उन्होंने अपना देह त्याग दिया।

1997 में उनकी मृत्यु के समय मिशनरीज ऑफ चैरिटी की कुल संख्या 4000 से अधिक हो गई थी। पूरे विश्व के 130 देशों में मदर टेरेसा के 610 फाउंडेशन थे।

मदर टेरेसा और उनसे जुड़े चमत्कार

साल 2002 में मोनिका बेसरा नाम की एक महिला ने दावा किया। मदर टेरेसा के चमत्कार की वजह से 1998 में, उनके पेट का ट्यूमर ठीक हो गया। Missionaries of Charity के फादर ने एक दूसरा चमत्कार बताया। एक Brazilian व्यक्ति Marcilio Andrino जो दिमाग के एक वायरल इन्फेक्शन से गुजर रहे थे। वह coma में चले गए।

इसके बाद, उनके परिवार वालों ने मदर टेरेसा से प्रार्थना की। जब अन्द्रिनो को ब्रेन सर्जरी के लिए ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया। तो वह अचानक से उठ कर बैठ गए। उनका brain infection भी पूरी तरह से ठीक हो चुका था। 17 दिसंबर 2015 को एक और चमत्कार की मान्यता Vatican City को pope Francis दी।

इसके कारण मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च एक सन्त के रूप में मान्यता मिली। मदर टेरेसा को, उनकी मृत्यु के 19वीं वर्षगांठ पर संत की उपाधि दी गई। यह कार्यक्रम सेंट पीटर्स स्क्वायर में हजारों सन्त, बिशप और कैथोलिक धर्म को मानने वाले लोगों के बीच हुआ। निस्वार्थ भाव से जरूरतमन्दों की सेवा करने के लिए। उन्हें 20वीं शताब्दी का सबसे सर्वश्रेष्ठ इंसान घोषित किया गया। इसी प्रकार जाने : स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय । नरेन्द्रनाथ दत्त से स्वामी विवेकानंद बनने तक का सफर।

मदर टेरेसा से जुड़े विवाद Controversy of Mother Teresa

 मदर टेरेसा का जीवन भी विवादों से गिरा हुआ रहा। उनके ऊपर एक वर्ग द्वारा आरोप-प्रत्यारोप लगातार लगते रहे। जिनके बारे में, आपको भी जाना चाहिए। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं –

1. एक ब्रिटिश जर्नलिस्ट Robin fox ने बताया कि मदर टेरेसा का आश्रम। किसी भी तरह से एक hospital नहीं था। यहां पर साध्य और असाध्य रोगों वाले, मरीजों को एक साथ रखा जाता था। जिन मरीजों का इलाज अन्य हॉस्पिटल में आसानी से हो सकता था। उनकी भी यहां दर्दनाक मौत हो जाती थी। मदर टेरेसा ने अपने आश्रम का एक दूसरा नाम भी रखा था। House of die यानी मरने वालों का घर।

2. मरते हुए हिंदू और मुसलमानों से पूछा जाता था। क्या उन्हें जन्नत या स्वर्ग का टिकट चाहिए। Patient के हां, बोलते ही। उनका धर्म परिवर्तन करा दिया जाता था। उनसे कहा जाता था कि उनके कष्ट को कम करने के लिए, इलाज किया जा रहा है। उनके सिर पर पानी डालकर, उसे baptize यानी कि  क्रिश्चियन बनाया जाता था।

3. अपने आश्रमो से इकट्ठा किया गया।  चंदा वो Bank for the work of religion में जमा करती थी। यह बैंक Vatican Church मैनेज करता था। जिसके लिए, वह काम किया करती थी। सालों से जमा किए गए, पैसे इतने ज्यादा थे। बैंक में आधे से ज्यादा पैसा, मदर टेरेसा का ही था। अगर वह उन पैसों को बैंक से निकाल लेती। तो शायद बैंक बर्बाद हो जाता। शायद इसी कारण से आश्रमों की हालत अधिक बुरी थी।

4. मदर टेरेसा के 8, ऐसे भी आश्रम थे। जहां एक भी गरीब आदमी नहीं रहता था। यह आश्रम सिर्फ चंदा इकट्ठा करने व धर्म परिवर्तन करने के लिए बनाए गए थे।

5. मदर टेरेसा की दोस्ती कुछ ऐसे लोगों के साथ थी। जिन्हें गवर्नमेंट क्रिमिनल घोषित कर चुकी थी। Robert Maxwell 1 व Charles Keating उन लोगों में से थे। जो आश्रम में करोड़ों रुपए का दान करते थे। इन पर हजारों करोड़ ठगने का आरोप भी लगा था।

6. 1975 में लोग इमरजेंसी के दौरान परेशान थे। लेकिन मदर टेरेसा ने इमरजेंसी का समर्थन किया था। क्योंकि इनकी दोस्ती कुछ बड़े politician के साथ थी।

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हमारे देश ने ऐसे कई महापुरुषों को जन्म दिया। सबसे अच्छा उदाहरण हम महात्मा गांधी या फिर सुभाष चंद्र बोस का ले सकते हैं। इन्होंने अपना सारा जीवन भारत देश के हित में बारे में सोचते हुए बिताया। क्या आपने कभी किसी महिला को महापुरुष के रूप में देखा है। जी हां, मदर टेरेसा एक ऐसी ही महिला थीं जो जीवनभर दूसरों के लिए काम करती रहीं। उन्होंने निस्वार्थ भावना से सभी की सेवा की। आज हम इस आर्टिकल से माध्यम से मदर टेरेसा पर निबंध पढ़ेंगे।

किसी जरूरतमंद व्यक्ति की मदद करने से अच्छा और क्या हो सकता है। इसी काम को अच्छे से निभाया ममता की मूर्ति मदर टेरेसा ने। मदर टेरेसा को आज पूरी दुनिया जानती है। उन्होंने अपने जीवनकाल में उल्लेखनीय कार्य किए। वह बदले में कुछ भी नहीं चाहती थीं। वह सभी गरीब लोगों के लिए एक मां के समान थीं। जैसे मां अपने बच्चों के लिए हर एक चीज का ख्याल रखती है ठीक उसी प्रकार मदर टेरेसा भी गरीब और असहाय लोगों का ख्याल रखती थीं। बहुत से लोग आज भी ये सोचते हैं कि मदर टेरेसा भारतीय थीं। लेकिन असल में वह विदेशी नागरिक थीं। क्योंकि मदर टेरेसा एक नन बनना चाहती थीं इसलिए वह मैसेडोनिया से भारत आ गईं। अगनेस गोंझा बोयाजिजू ही बाद में आगे चलकर मदर टेरेसा बनीं।

मदर टेरेसा
अगनेस गोंझा बोयाजिजू
26 अगस्त सन् 1910
उत्तरी मैसेडोनिया
कैथोलिक नन
87 वर्ष
5 सितंबर सन् 1997
कैथोलिक स्कूल
कैथोलिक
द्राना बोयाजू
निकोला बोयाजू

मदर टेरेसा का बचपन

मदर टेरेसा का बचपन थोड़ा अलग था। निकोला बोयाजू के घर मदर टेरेसा ने जन्म लिया। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को हुआ था। मदर टेरेसा का जन्मस्थान स्काॅप्जे था। अब स्काॅप्जे को मैसेडोनिया कहते हैं। मदर टेरेसा का असली नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था। मदर टेरेसा की माता का नाम द्राना बोयाजू था। मदर टेरेसा अपने भाई बहन में सबसे छोटी थीं। मदर टेरेसा शांत स्वभाव की बच्ची थीं। वह मेहनती भी थीं। मदर टेरेसा के पिता एक व्यवसायी के रूप में काम करते थे। मदर टेरेसा के पिता को ईश्वर में बहुत अधिक विश्वास था। उनके पिता को चर्च जाना भी बहुत पसंद था। मदर टेरेसा के जीवन में सबसे मुश्किल घड़ी तब रही जब मदर टेरेसा के पिता अपनी पत्नी और अपने बच्चों को इस छोड़कर इस दुनिया से चल बसे।

मदर टेरेसा और चर्च से लगाव

मदर टेरेसा के पिता निकोला बोयाजू बहुत ही दयालु किस्म के व्यक्ति थे। वह धार्मिक भी थे। निकोला बोयाजू कभी भी चर्च जाना नहीं भूलते थे। चर्च जाकर वह शांति का अनुभव करते थे। अपने पिता के साथ मदर टेरेसा ने भी चर्च जाना शुरू कर दिया था। मदर टेरेसा भी धार्मिक ख्यालों की हो गईं। वह चर्च जाकर प्रार्थना करना नहीं भूलती थीं। और साथ ही साथ वह चर्च में ईसाई गीत भी गाया करती थीं। सभी उनकी आवाज की तारीफ किया करते थे। चर्च जाने के दौरान ही उनके मन में ईश्वर भक्ति के लिए आसक्ति पैदा हुई। वह ईश्वर को ही अपना सबकुछ मानने लगीं।

मदर टेरेसा की शिक्षा

मदर टेरेसा बचपन से ही बेहद मेहनती थीं। उनको स्कूली शिक्षा से ज्यादा धार्मिक शिक्षा पसंद आने लगी थी। उनको चर्च से लगाव हो गया था। चर्च में जाकर वह घंटों ईश्वर भक्ति में वक्त बिताया करती थीं। उनके पिता ने उनका दाखिला कैथोलिक स्कूल में करवाया था। कुछ समय कैथोलिक स्कूल जाने के बाद उन्होंने सरकारी स्कूल से भी शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय स्कूली शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनका मन केवल ईश्वर में रमने लगा। अब वह नन बनना चाहती थीं। इसी कारण के चलते वह सिस्टर ऑफ लैराटो से जुड़ गईं। 18 वर्ष के बाद उन्होंने अपना समस्त जीवन लोगों की सेवा में ही बीता दिया।

मदर टेरेसा का भारत दौरा

मदर टेरेसा आश्रितों के लिए काम करने लगीं। उनका मन लोगों की सेवा में ही लगता था। वह अपने देश के ही एक आश्रम से जुड़ गई थीं। एक दिन वह आश्रम की तरफ से भारत दौरे पर आईं। वह भारत की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं। वह सबसे पहले दार्जिलिंग के दौरे पर आईं। उसके बाद वह कोलकाता भी गईं। कोलकाता में उन्होंने लोगों में गरीबी और लाचारी देखी। लोगों की परेशानी देखकर वह अंदर से दुखी हो गईं। मदर टेरेसा को कोलकाता के स्कूल में पढ़ाने का काम दिया गया। जब वह स्कूल में पढ़ा रही थीं तो एक दिन उनको भगवान यीशु ने यह संदेश देते हुए कहा कि वह भारत के असहाय लोगों के जीवन को संवारने में अपनी जिंदगी निकाल दें। फिर तो मदर टेरेसा ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह फिर भारत की स्थायी नागरिक बन गईं और पूरे देशवासियों की सेवा की।

मदर टेरेसा को प्राप्त उपलब्धियां

  • साल 1962 में मदर टेरेसा को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
  • पद्मश्री पुरस्कार हासिल करने के बाद उनको 1980 में भारत रत्न दिया गया।
  • अमेरिका में भी उन्हें सम्मानित किया गया। अमेरिका में उन्होंने मेडल ऑफ फ्रीडम का पुरस्कार प्राप्त किया।
  • उनको नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार उन्हें 1979 में मिला था।

मदर टेरेसा की मृत्यु

मदर टेरेसा ने अपने पूरे जीवनकाल में खूब काम किया। वह निस्वार्थ भाव से सभी की सेवा में लगी रहीं। कई साल तक बिना थके काम करने के पश्चात वह आखिरकार बीमार रहने लगीं। मदर टेरेसा को दिल की बीमारी लग गई थी। सन् 1983 में उनको पहला हार्ट अटैक आया। बाद में कई और साल बीमार रहने के बाद आखिरकार 5 सितंबर सन् 1997 को उन्होंने अंतिम सांस ली। वह दुनिया को अलविदा कह गईं।

मदर टेरेसा परोपकारी महिला थीं। उन्होंने जीवनभर असहाय लोगों की सहायता में अपना जीवन बीता दिया। परोपकारी लोग ही अपने जीवन में आगे बढ़ सकते हैं। हमें मदर टेरेसा के जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि हम सभी निस्वार्थ भाव से असहाय लोगों की सेवा करें।

मदर टेरेसा पर निबंध 200 शब्दों में

मदर टेरेसा को कौन नहीं जानता है। हम सभी ने उनका नाम सुना है। वह महान लोगों में गिनी जाती हैं। मदर टेरेसा को मदर की ख्याति भी इसलिए प्राप्त हुई क्योंकि वह सच्चे संत के समान थीं। वह मैसेडोनिया में जन्मी थीं। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू था। उनकी माता का नाम द्राना बोयाजू था। वह होनहार और मेहनती थीं। उनका मन पढ़ाई से ज्यादा ईश्वर की भक्ति और असहाय मानवों की सेवा में लगता। सेवा भाव का ऐसा प्रभाव था कि उन्होंने शादी तक नहीं की। वह ताउम्र कुंवारी रहीं।

उन्होंने अपने पिता को बचपन में ही खो दिया था। मदर टेरेसा ने अपने पिता से दयालुता और धार्मिकता सीखी। वह बचपन से ही अपने पिता के संग चर्च जाया करती थीं। चर्च में वह मधुर संगीत भी गाती थीं। चर्च में ही उन्होंने यह प्रतिज्ञा ले ली थी कि वह नन बन जाएंगी। नन बनकर वह भारत के दौरे पर आईं। भारत में गरीबी और बीमार लोगों को देखकर वह बेहद दुखी हो उठीं। उन्होंने तय किया कि वह भारत में रहकर ही सभी जरूरतमंद लोगों की सेवा करेंगी। उनके सराहनीय काम के लिए उनको नोबेल पुरस्कार भी मिला था।

मदर टेरेसा पर 10 लाइनें

  • मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, सन् 1910 को हुआ था।
  • मदर टेरेसा एक महान संत के समान थीं।
  • मदर टेरेसा को उनके सामाजिक कार्यों के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था।
  • उन्होंने पांच भाषाओं पर अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी।
  • मदर टेरेसा भारतीय नागरिक नहीं थीं। वह मैसेडोनिया की नागरिक थीं।
  • मदर टेरेसा ने कुष्ठ रोगियों के लिए बहुत ज्यादा काम किया।
  • वह सभी जीवों को एकसमान नजरों से देखती थीं।
  • मदर टेरेसा द्वारा मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की शुरुआत की गई थी।
  • मदर टेरेसा परोपकारी महिला थीं।
  • मदर टेरेसा ने ताउम्र लोगों की सेवा की।

मदर टेरेसा से सम्बंधित FAQs

प्रश्न 1. मदर टेरेसा का वास्तविक नाम क्या था?

उत्तर- मदर टेरेसा का वास्तविक नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था।

प्रश्न 2. मदर टेरेसा के माता पिता का नाम क्या था?

उत्तर- मदर टेरेसा की माता का नाम द्राना बोयाजू था। और पिता का नाम निकोला बोयाजू था।

प्रश्न 3. मदर टेरेसा का जन्मस्थान का नाम क्या था?

उत्तर- मदर टेरेसा के जन्मस्थान का नाम मैसेडोनिया था।

प्रश्न 4. मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार कब मिला था?

उत्तर- मदर टेरेसा को वर्ष 1979 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

प्रश्न 5. मदर टेरेसा की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर- मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर वर्ष 1997 को हुई थी।

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mother teresa essay hindi

मदर टेरेसा पर निबंध |Essay on Mother Teresa in Hindi

by Meenu Saini | Oct 19, 2023 | Hindi | 0 comments

मदर टेरेसा पर निबंध

Hindi Essay and Paragraph Writing – Mother Teresa (मदर टेरेसा) for all classes from 1 to 12

मदर टेरेसा पर निबंध –  इस लेख में हम नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा के बारे में जानेंगे | मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लोगों की सेवा और भलाई में लगा दिया। सम्पूर्ण विश्व में फैले उनके मानवीय कार्यों के कारण मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला। अक्सर स्टूडेंट्स से असाइनमेंट के तौर या परीक्षाओं में मदर टेरेसा पर निबंध पूछ लिया जाता है। इस पोस्ट में मदर टेरेसा पर कक्षा 1 से 12 के स्टूडेंट्स के लिए 100, 150, 200, 250 और 350 शब्दों में संक्षिप्त निबंध/अनुच्छेद दिए गए हैं।

  • मदर टेरेसा जी पर 10 लाइन  10 lines
  • मदर टेरेसा जी पर अनुच्छेद 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में
  • मदर टेरेसा जी पर अनुच्छेद 4 और 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में
  • मदर टेरेसा जी पर अनुच्छेद 6, 7 और 8 के छात्रों के लिए 200 शब्दों में
  • मदर टेरेसा जी पर अनुच्छेद 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 250 से 300 शब्दों में

मदर टेरेसा जी पर 10 लाइन 10 lines on Mother Teresa in Hindi

  • मदर टेरेसा एक ऐसी महान महिला थी, जो अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध थी।
  • मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मैसेडोनिया) के एक अल्बेनीयाई परिवार में हुआ था।
  • मदर टेरेसा का वास्तविक नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था।
  • मदर टेरेसा का पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्राना बोयाजू था।
  • मदर टेरेसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी।
  • मदर टेरेसा ने गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों के मदद करने के उद्देश्य से 1950 में कोलकाता में ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की थी। 
  • मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया था।
  • मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 में दिल के दौरे के कारण हुई थी।
  • मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद इन्हें पोप जॉन पॉल द्वितीय ने धन्य घोषित किया और इन्हें कोलकाता की धन्य की उपाधि प्रदान की।
  • पोप फ्रांसिस ने 09 सितंबर 2016 को वेटिकन सिटी में मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया।

Short Essay on Mother Teresa in Hindi मदर टेरेसा पर अनुच्छेद कक्षा 1 to 12 के छात्रों के लिए 100, 150, 200, 250 से 300 शब्दों में

मदर टेरेसा पर निबंध – मानवतावादी सेवा के क्षेत्र की एक प्रसिद्ध हस्ती मदर टेरेसा का नाम आते ही मन में मातृ स्नेह की गहरी भावना जागृत हो जाती है। वह दूसरों, विशेषकर निराश्रितों की सेवा में अपने समर्पित कार्य के माध्यम से मानवता के सार का उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। मदर टेरेसा उन महान व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने दूसरों की भलाई को सर्वोपरि प्राथमिकता दी और अपना पूरा जीवन उनकी सेवा और कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। दुनिया को ऐसे महान व्यक्तियों की जरूरत है जो मानवीय सेवा को सर्वोच्च धर्म मानते हो।

मदर टेरेसा पर निबंध कक्षा 1, 2, 3 के छात्रों के लिए 100 शब्दों में

मदर टेरेसा एक ऐसी महान महिला थी, जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और भलाई में लगा दिया। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे शहर में हुआ था। मदर टेरेसा जब मात्र 8 साल की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी माता ने किया। छोटी उम्र से ही मदर टेरेसा एक बहुत मेहनती लड़की थी। पढ़ाई के साथ-साथ, गाना उन्हें बेहद पसंद था। ऐसा कहा जाता है कि जब वह 12 साल की थीं तभी उन्हें अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी। भारत आने के बाद उन्होंने 1950 में, गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए व्यक्तियों की देखभाल और सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से कोलकाता में ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। मदर टेरेसा के परोपकारी कार्यों से प्रभावित होकर 1980 में भारत सरकार ने उन्हें देश का सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया। 5 सितंबर 1997 को दिल का दौरा पड़ने से मदर टेरेसा का निधन हो गया।

मदर टेरेसा पर निबंध कक्षा 4, 5 के छात्रों के लिए 150 शब्दों में

अपने मानवतावादी कार्यों के लिए प्रसिद्ध मदर टेरेसा एक महान महिला थी। उनका का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे (अब मैसेडोनिया में) में एक अल्बानियाई परिवार में हुआ था तथा उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्राना बोयाजू था। बचपन से ही मेहनती लड़की रहीं मदर टेरेसा को पढ़ाई के साथ-साथ गाने का भी शौक था। 12 साल की उम्र में, एक धार्मिक यात्रा के दौरान उनका दृष्टिकोण बदल गया और उन्होंने आजीवन सेवा का संकल्प अपना लिया और भारत आने के बाद, पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली बॉर्डर वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। असहाय लोगों के सेवा के उद्देश्य से  1950 में कोलकाता में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, और खुद को लोगों की निस्वार्थ सेवा करने के लिए समर्पित कर दिया। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में अपनी स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। मदर टेरेसा जीवन के अंत तक लोगो को सेवा करती रही। उनके निस्वार्थ सेवा को देखकर उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। दुर्भाग्य से मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर 1997 को हो गई।

मदर टेरेसा पर निबंध कक्षा 6, 7, 8 के छात्रों के लिए 200 शब्दों में

मदर टेरेसा, जिनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था, का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे (अब मैसेडोनिया में) में हुआ था। वह एक रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। सन् 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं। जिन्हें समाज ने बाहर निकाल दिया हो, ऐसे लोगों पर इस महिला ने अपनी ममता व प्रेम लुटा कर सेवा भावना का परिचय दिया और साल 1970 तक वे अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्ध हो गईं। भारत सरकार ने उनकी समाज सेवा और जन कल्याण की भावना की कद्र करते हुए 1962 में उन्हें ‘पद्मश्री’ और 1980 में ‘भारत रत्न’ से नवाजा तथा विश्व भर में फैले उनके मिशनरी के कार्यों के लिए 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला।

सरकारों और संस्थाओं से प्रशंसा पाने के बावजूद मदर टेरेसा को आलोचना का भी सामना करना पड़ा। उन पर कई गंभीर आरोप लगाकर, उनकी निंदा की गई। लेकिन कहते हैं ना जहां सफलता होती है वहां आलोचना तो होती ही है। 1983 में, 73 वर्ष की आयु में, मदर टेरेसा पोप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए रोम गईं, जहाँ उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा। इसके बाद, 1989 में उन्हें दूसरा दिल का दौरा पड़ा। बुढ़ापे के कारण बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण 05 सितंबर, 1997 को मदर टेरेसा का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद, पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें धन्य घोषित किया और उन्हें कोलकाता की धन्य की उपाधि दी।

मदर टेरेसा पर निबंध कक्षा 9, 10, 11, 12 के छात्रों के लिए 250 से 300 शब्दों में

अपने मानवीय कार्यों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कोप्जे (अब मैसेडोनिया में) में हुआ था। वह एक अल्बानियाई परिवार से थी। उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी इनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद उनका लालन-पालन उनकी माता द्राना बोयाजू ने की। बचपन से ही मेहनती लड़की रहीं मदर टेरेसा को पढ़ाई के साथ-साथ गाने का भी शौक था। वह और उनकी बहन घर के पास के गिरजाघर में मुख्य गायिकाएँ थीं। मदर टेरेसा जब बारह साल की थी तभी उन्होंने अपना सारा जीवन जनसेवा में लगाने का मन बना चुकी थी। अठारह साल की उम्र में, वह ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल हो गई। तत्पश्चात वह आयरलैंड गयी और वहाँ अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थी। उसके बाद मदर टेरेसा 6 जनवरी, 1929 को आयरलैंड से कोलकाता के ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पहुंचीं। उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ाने का काम दिया गया। इसके बाद, उन्होंने सेंट मैरी स्कूल की स्थापना की, जिसे डबलिन की सिस्टर लोरेटो ने चलाया था, जहाँ गरीब बच्चे पढ़ते थे। मदर टेरेसा को बंगाली और हिंदी दोनों भाषाओं का अच्छा ज्ञान था और वह छात्रों को इतिहास और भूगोल का पाठ पढ़ाती थीं। कई वर्षों तक उन्होंने इस काम को पूरी निष्ठा और लगन से करती रही। 

इन्ही वर्षों के दौरान कोलकाता में रहते हुए मदर टेरेसा ने वहाँ की गरीबी, बीमारियों की फैलाव, लाचारी और अज्ञानता को करीब से देखा और इन सब से उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके बाद उन्हें एक ऐसा काम करने की इच्छा हुई, जिससे वे लोगों की मदद कर सकें, उनके दर्द कम कर सकें। इसलिए उन्होंने अध्यापक के काम को छोड़कर लोगों के सेवा का संकल्प लिया। इसके बाद पटना के होली फैमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग की ट्रेनिंग पुरी की और कोलकाता वापस आ गई। 1948 में मदर टेरेसा ने भारतीय नागरिकता ले ली। सन् 1949 में मदर टेरेसा ने असहाय लोगों की सेवा के उद्देश्य से ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। इस मिशन के तहत, मदर टेरेसा ने व्यक्तिगत रूप से प्लेग और कुष्ठ रोग जैसी विभिन्न बीमारियों से पीड़ित लोगों के घावों की देखभाल की, साथ ही निराश्रित, भूखे और अनाथों की निस्वार्थ सेवा की और इस तरह कुछ सालों में मदर टेरेसा सभी गरीब, असहाय लोगों के लिए मसीहा बन गई। 1965 में, मदर टेरेसा ने रोम के पोप जॉन पॉल से अपनी मिशनरियों को दुनियाभर में फैलाने की अनुमति प्राप्त की। परिणामस्वरूप, भारत के बाहर पहला मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी संस्थान वेनेजुएला में स्थापित किया गया। और कुछ सालों में पूरी दुनिया में उनके मिशनरियों के तहत गरीब, भूखे, असहाय लोगों की सहायता की जाने लगी।

मदर टेरेसा को विश्व भर में फैले उनके मिशनरी के कार्यों के लिए 1979 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया और भारत सरकार ने उन्हें 1962 में ‘पद्मश्री’ और 1980 में ‘भारत रत्न’ से नवाजा। इतना सम्मान मिलने के बावजूद,  उन्हें कई आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। फिर भी वह अपना काम करती रही। 1983 में 73 वर्ष की आयु में पोप जॉन-2 से मिलने रोम गई थी, वहीं उनको पहला दिल का दौरा पड़ा। फिर 1989 में दूसरा दिल का दौरा पड़ने से उनका स्वास्थ्य और खराब हो गया जिसके चलते 3 मार्च 1997 को उन्होंने “मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के मुखिया का पद छोड़ दिया और 5 सितंबर 1997 को फिर से दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई।

Hindi Essay Writing Topic – मदर टेरेसा (Mother Teresa)

प्रारंभिक जीवन, पुरस्कार व सम्मान, शिक्षा और नन.

मदर टेरसा 20वीं सदी की महानतम शख्सियतों में से एक मानी जाती हैं | मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। इन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की। इन्होंने अपने जीवन के 45 सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ  लोगों की मदद की और साथ ही मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया। इन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा, कलकत्ता की संत टेरेसा नाम से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन बीमारों और गरीबों की देखभाल के लिए समर्पित कर दिया। 

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे (अब मेसीडोनिया में) में हुआ था। इनके पिता निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम “एग्नेस गोंझा बोयाजिजू” था। उनके पिता एक उद्यमी थे, जो एक निर्माण ठेकेदार और दवाओं व अन्य सामानों के व्यापारी के रूप में काम करते थे। जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी इनके पिता का निधन हो गया था। जिसके बाद इनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी इनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। उन्होंने अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगाया और 18 साल की उम्र में इन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। तत्पश्चात यह आयरलैंड चली गयी | जहाँ इन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में, बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं। 1981 में, इन्होने अपना नाम बदलकर टेरेसा रख लिया और उन्होने आजीवन मानव सेवा का संकल्प लिया। 

मदर टेरेसा को 1931 मे पोप तेइसवें का शांति पुरस्कार और धर्म की प्रगति के लिए टेम्पेलटन फाउण्डेशन पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत सरकार द्वारा मदर टेरेसा को 1962 में ‘पद्म श्री’ की उपाधि मिली। 1988 में ब्रिटेन द्वारा ‘आईर ओफ द ब्रिटिश इम्पायर’ की उपाधि प्रदान की गयी। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने उन्हें डी-लिट की उपाधि से विभूषित किया। 19 दिसंबर 1979 को मदर टेरेसा को मानव-कल्याण कार्यों के हेतु नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। 

1979 में, मदर टेरेसा को उनके मानवीय कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला। सितंबर 1997 में उनकी मृत्यु हो गई और अक्टूबर 2003 में उन्हें संत घोषित कर दिया गया। दिसंबर 2015 में, पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा के लिए जिम्मेदार एक दूसरे चमत्कार को मान्यता दी, जिससे 4 सितंबर, 2016 को उनके संत होने का रास्ता साफ हो गया। उन्हें 2016 में कलकत्ता की सेंट टेरेसा के रूप में मान्यता दी गई | मदर टेरेसा गरीबों की मदद करने के लिए, समर्पित महिलाओं की एक रोमन कैथोलिक मण्डली, ऑर्डर ऑफ द मिशनरीज ऑफ चैरिटी की संस्थापक रही थीं। 

एग्नेस ने एक कॉन्वेंट द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालय और फिर एक राज्य द्वारा संचालित माध्यमिक विद्यालय में भाग लिया। एक लड़की के रूप में, वह स्थानीय सेक्रेड हार्ट गाना बजाने वालों में गाती थी और अक्सर उन्हें एकल गाने के लिए कहा जाता था। मण्डली ने लेटनिस में चर्च ऑफ़ द ब्लैक मैडोना की वार्षिक तीर्थयात्रा की, और वे 12 साल की उम्र में ऐसी ही एक यात्रा पर थी कि जहाँ पहली बार धार्मिक जीवन के लिए एक आह्वान महसूस किया। 

छह साल बाद, 1928 में, एक 18 वर्षीय एग्नेस बोजाक्सीहु ने नन बनने का फैसला किया और डबलिन में सिस्टर्स ऑफ लोरेटो में शामिल होने के लिए आयरलैंड के लिए रवाना हो गए। यह वहाँ था कि उसने लिसिएक्स के सेंट थेरेसे के बाद सिस्टर मैरी टेरेसा नाम लिया। एक साल बाद, सिस्टर मैरी टेरेसा ने नई अवधि के लिए दार्जिलिंग, भारत की यात्रा की; मई 1931 में, उन्होंने प्रतिज्ञा का अपना पहला पेशा बनाया। बाद में, उन्हें कलकत्ता भेजा गया, जहाँ उन्हें सेंट मैरी हाई स्कूल फॉर गर्ल्स में पढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया, जो लोरेटो सिस्टर्स द्वारा संचालित एक स्कूल है और शहर के सबसे गरीब बंगाली परिवारों की लड़कियों को पढ़ाने के लिए समर्पित है। सिस्टर टेरेसा ने धाराप्रवाह बंगाली और हिंदी दोनों बोलना सीखा क्योंकि उन्होंने भूगोल और इतिहास पढ़ाया और शिक्षा के माध्यम से लड़कियों की गरीबी को कम करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया।

24 मई, 1937 को, उन्होंने अपनी अंतिम प्रतिज्ञाओं को गरीबी, शुद्धता और आज्ञाकारिता के जीवन में ले लिया। जैसा कि लोरेटो नन के लिए प्रथा थी, उसने अपनी अंतिम प्रतिज्ञा करने पर “मदर” की उपाधि धारण की और इस तरह मदर टेरेसा के रूप में जानी जाने लगी। मदर टेरेसा ने सेंट मैरी में पढ़ाना जारी रखा और 1944 में वह स्कूल की प्रिंसिपल बनीं। अपनी दयालुता, उदारता और अपने छात्रों की शिक्षा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता के माध्यम से, उन्होंने उन्हें मसीह के प्रति समर्पण के जीवन की ओर ले जाने की कोशिश की। उसने प्रार्थना में लिखा, “मुझे हमेशा उनके जीवन का प्रकाश बनने की शक्ति दो, ताकि मैं उन्हें आपके पास ले जा सकूं।”

10 सितंबर, 1946 को, मदर टेरेसा ने दूसरी पुकार का अनुभव किया, “कॉल के भीतर कॉल” जो उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देगी। वह एक वापसी के लिए कलकत्ता से हिमालय की तलहटी के लिए एक ट्रेन में सवार हो रही थी, जब उसने कहा कि क्राइस्ट ने उससे बात की और उसे शहर के सबसे गरीब और बीमार लोगों की सहायता के लिए कलकत्ता की झुग्गियों में काम करने के लिए शिक्षण छोड़ने के लिए कहा।

चूंकि मदर टेरेसा ने आज्ञाकारिता की शपथ ली थी, इसलिए वह आधिकारिक अनुमति के बिना अपने कॉन्वेंट को नहीं छोड़ सकती थीं। लगभग डेढ़ साल की पैरवी के बाद, जनवरी 1948 में उन्हें आखिरकार इस नई कॉलिंग को आगे बढ़ाने की मंजूरी मिल गई। उस अगस्त में, वह नीली और सफेद साड़ी पहनकर, जिसे वह जीवन भर सार्वजनिक रूप से पहनेगी, उसने लोरेटो कॉन्वेंट छोड़ दिया और शहर में घूम गई। छह महीने के बुनियादी चिकित्सा प्रशिक्षण के बाद, उन्होंने पहली बार कलकत्ता की मलिन बस्तियों में यात्रा की, जिसमें “अवांछित, अप्रसन्न, बेपरवाह” की सहायता करने के अलावा और कोई विशिष्ट लक्ष्य नहीं था। मदर टेरेसा ने शहर के गरीबों की मदद के लिए अपने आह्वान को तुरंत ठोस कार्रवाई में बदल दिया। उसने एक ओपन-एयर स्कूल शुरू किया और एक जीर्ण-शीर्ण इमारत में मरने वाले निराश्रितों के लिए एक घर की स्थापना की, उसने शहर की सरकार को उसके लिए दान करने के लिए मना लिया। अक्टूबर 1950 में, उन्होंने एक नई कलीसिया, मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के लिए विहित मान्यता प्राप्त की, जिसे उन्होंने केवल कुछ मुट्ठी भर सदस्यों के साथ स्थापित किया- उनमें से अधिकांश पूर्व शिक्षक या सेंट मैरी स्कूल के छात्र थे। जैसे-जैसे उनकी मण्डली की संख्या बढ़ती गई और भारत और दुनिया भर से दानों की भरमार होती गई, मदर टेरेसा की धर्मार्थ गतिविधियों का दायरा तेजी से बढ़ा। उन्होंने एक कोढ़ी कॉलोनी, एक अनाथालय, एक नर्सिंग होम, एक पारिवारिक क्लिनिक और मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिकों की एक श्रृंखला की स्थापना की।

1971 में, मदर टेरेसा ने अपना पहला अमेरिकी-आधारित चैरिटी हाउस खोलने के लिए न्यूयॉर्क शहर की यात्रा की, और 1982 की गर्मियों में, वह गुप्त रूप से बेरूत, लेबनान चली गईं, जहां उन्होंने बच्चों की सहायता के लिए क्रिश्चियन ईस्ट बेरूत और मुस्लिम वेस्ट बेरूत के बीच पार किया। 1985 में, मदर टेरेसा न्यूयॉर्क लौट आईं और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा की 40वीं वर्षगांठ पर भाषण दिया। वहाँ रहते हुए, उन्होंने गिफ़्ट ऑफ़ लव भी खोला, जो एचआईवी/एड्स से संक्रमित लोगों की देखभाल के लिए एक घर है।

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मदर टेरेसा पर निबंध Essay on Mother Teresa in Hindi मदर टेरेसा का जीवन परिचय - मदर टेरेसा का वास्तविक नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु मदर टेरसा रोमन था . वे कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने १९४८ में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। आपने १९५० में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की। ४५ सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की इन्होंने मदद की और साथ ही मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया।दिल के दौरे के कारण 5 सितंबर 1997 के दिन मदर टैरेसा की मृत्यु हुई थी।यद्यपि मदर टेरेसा पहले लोरेटो कान्वेंट में काम करती थी किन्तु उन्होंने महसूस किया कि वे यहाँ रहकर गरीब लोगों की सेवा नहीं कर सकती हैं .इसीलिए अपने जीवन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए उन्होंने ननों का अपना धर्मसंघ बनाया जिसे सिस्टर्स ऑफ़ चैरिटी के नाम से जाना जाता है .१९६५ में इस धर्मसंघ को पॉप की मान्यता मिल गयी .आज इनकी मृत्यु के बॉस भी चार हज़ार से ज्यादा स्त्री और पुरुष सौ से अधिक केंद्र चलाकर उनके मिशनरी कार्यों को जारी रखें हुए हैं .

मदर टेरेसा पर निबंध Essay on Mother Teresa in Hindi

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मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay in Hindi)

Essay On Mother Teresa in Hindi

In this Article

मदर टेरेसा पर 10 लाइन (10 Lines on Mother Teresa)

मदर टेरेसा पर छोटा निबंध 200-300 शब्दों में (short essay on mother teresa in hindi 200-300 words), मदर टेरेसा पर निबंध 400-500 शब्दों में (essay on mother teresa in hindi 400-500 words), मदर टेरेसा के बारे में रोचक तथ्य (interesting facts about mother teresa in hindi), मदर टेरेसा के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (faqs), इस निबंध से बच्चों को क्या सीख मिलती है (what will your child learn from mother teresa essay).

मदर टेरेसा एक महान समाज सेविका और परोपकारी महिला थीं। वे उदार हृदय की महिला थीं जो दया और करुणा की भावना से ओत प्रोत थीं। उन्हें भगवान का दूत कहना बिलकुल गलत नहीं होगा क्योंकि उन्होंने समाज के ऐसे विशेष वर्ग के लिए सेवा का काम किया था जो केवल भगवान के अनुयायी ही कर सकते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि मदर टेरेसा पर निबंध लिखने का क्या तरीका हो सकता है या निबंध किस तरह से लिखा जाए कि टीचर आपके बच्चे की प्रशंसा करें तो इसके लिए हमारे आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।

मदर टेरेसा इतिहास में चर्चित एक सम्मानित नाम है। जिनके बारे में पूरी दुनिया की किताबों में लिखा गया है। इसलिए यदि आपके बच्चे को स्कूल में इस पर निबंध लिखने को कहा गया है और वो भी 10 लाइन में तो इसके लिए आप हमारे आर्टिकल से मदद ले सकते हैं।

  • मदर टेरेसा भारत की महान समाज सेविका थीं।
  • उनका जन्म यूरोप के सोप्जे, मेसेडोनिया (ऑटोमन साम्राज्य) में 26 अगस्त 1910 को हुआ था। 
  • बचपन से ही वो धार्मिक और दयावान महिला थीं और उन्होंने नन बनकर लोगों की सेवा करने का प्रण लिया था।  
  • वह भारत में 1929 में आईं और यहां के गरीब दुखियों को देखकर यहीं पर रह गईं। 
  • यहां की नागरिकता लेकर वो भारत के बीमार और गरीबों की सेवा करने लगी। 
  • नन बनने के बाद उनका नाम मेरी टेरेसा था जो उनके सेवा भाव के कारण मदर टेरेसा में परिवर्तित हो गया।
  • उनके इन्हीं कार्यों से भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री से सम्मानित किया था।
  • 1980 में उन्हें भारत रत्न से भी नवाजा गया जो भारत का सर्वोच्च सम्मान है। 
  • 1979 में उन्हें शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 
  • दुनिया भर में करुणा और सेवा का साक्षात उदाहरण बन चुकी मदर टेरेसा 5 सितंबर 1997 को कालवश हो गईं।

यदि आप मदर टेरेसा के बारे में 200 से 300 शब्दों में एक छोटा निबंध लिखना चाहते हैं तो इसके नीचे बताए गए निबंध को पढ़कर आप एक बेहतरीन निबंध लिख सकते हैं।

मदर टेरेसा एक भारत की एक महान शख्सियत थीं जिन्होंने अपना सारा जीवन निर्धन और जरूरतमंदों की मदद में लगा दिया। मदर टेरेसा एक करुणापूर्ण और संवेदनशील महिला थी जिन्होंने गैर भारतीय होने के बावजूद भारत के लोगों की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया।

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया में हुआ था। उनके पिता एक साधारण व्यापारी थे। उनका वास्तविक नाम एग्नेस गोंकशे बोजशियु था। वो अपने परिवार की सबसे छोटी संतान थी। उनके माता पिता का परोपकारी स्वभाव ही उनके जीवन का आधार बना और वह बचपन से ही लोगों की मदद करने लगीं और नन के पेशे को अपना लिया। 1929 में वह भारत पहुंचीं और दार्जिलिंग के एक स्कूल में काम करने लगीं। 24 मई 1931 को अपनी पहली धार्मिक शपथ ली और मिशनरियों के संरक्षक संत थेरेसे डी लिसीक्स के नाम पर अपना नाम टेरेसा रखना चुना। 

आगे जाकर कलकत्ता के लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाने लगीं और 1944 में उन्हें इसकी प्रधानाध्यापिका नियुक्त किया गया। हालाँकि मदर टेरेसा को स्कूल में पढ़ाना अच्छा लगता था, लेकिन कलकत्ता में अपने आस-पास की गरीबी से वह बहुत परेशान हो गई थीं। 1946 में, मदर टेरेसा को महसूस हुआ कि उन्होंने यीशु के लिए भारत के गरीबों की सेवा करने के लिए अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी है और पढ़ाने का पेशा छोड़कर उन्होंने 1950 में उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। अपने नि:स्वार्थ सेवा भाव से वह मानवता के एक विशिष्ट उदाहरण के रूप में प्रख्यात हो गईं। भारत सरकार द्वारा उन्हें 1962 में पद्मश्री, 1980 भारत रत्न और नोबेल फॉउंडेशन ने 1979 में शांति पुरस्कार से सम्मानित किया। 

यदि आप 3 या 4 क्लास के बच्चों के लिए मदर टेरेसा पर निबंध लिखने चाहते हैं तो इसके लिए आप हमारे द्वारा बताए गए निबंध से मदद ले सकते हैं और इसे अपने शब्दों में लिख सकते हैं।

भूमिका (Introduction)

जब भी कोई सेवा की बात करता है तो हमारे जहन में सबसे पहला नाम मदर टेरेसा का आता है जो मानवता की एक जीती जागती मिसाल हैं। मदर टेरेसा ऐसी हस्ती थीं जो बिना अपने बारे में सोचे लोगों के सेवा करती थीं। हमारे भारत की मूल नागरिक न होते हुए भी उन्होंने यहां के लोगों के लिए जो कुछ भी किया वह एक मिसाल है। 

जीवन परिचय(Life Introduction)

मदर टेरेसा का जन्म साधारण परिवार में 26 अगस्त 1910 को यूरोप के मेसेडोनिया में हुआ था। परिवार वालों ने उनका नाम एग्नेस गोंकशे बोजशियु रखा था। उनके पिता का नाम निकोला बोयाशू था जो एक व्यापारी थे और उनकी मां का नाम द्राना बोयाशु था जो एक गृहिणी थी। साधारण परिवार होने के बावजूद भी जरूरतमंद लोगों की मदद करते थे। मदर टेरेसा अपने परिवार की सबसे छोटी सदस्य थी जो हमेशा से धर्म संबंधी बातों में रुचि लेती थीं और उन्होंने शुरू से ही अपना जीवन मानव सेवा में लगाने का निर्णय कर लिया था। 

मदर टेरेसा का भारत आगमन 1929 में हुआ। कुछ दिनों तक उन्होंने दार्जिलिंग में और उसके बाद कोलकाता के स्कूलों में काम किया। उन्होंने अनाथ बच्चों को पढ़ाने के लिए 1948 में एक स्कूल शुरू किया। इसके बाद उन्होंने अनाथ, गरीब और बीमार लोगों की सेवा करने के उद्देश्य से 1950 में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। 

सम्मान और पुरस्कार (Honour and Award)

मदर टेरेसा को अपने नेक कार्यों के लिए कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार दिए गए। भारत के लोगों की सेवा करने के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1962 में पद्मश्री से और 1980 में भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया। 1962 में उन्हें रेमन मैग्सेसे और 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया। वह पूरे विश्व में मानवता, करुणा और दया का जीता-जागता प्रतीक बन गईं। 

मृत्यु (Death)  

अपने अंतिम वर्षों में मदर टेरेसा दिल की बीमारी से ग्रस्त थीं और उन्हें पहला हार्ट अटैक 73 वर्ष की आयु में आया था। उसके बाद 1989 में फिर से उन्हें दिल का दौरा पड़ा। धीरे धीरे उनकी तबियत खराब रहने लगी और 5 सितंबर 1997 को वह इस दुनिया को छोड़कर चली गईं। उनकी सेवा की भावना उनके बाद भी उनके अनुयायियों में कायम रही है। उनके द्वारा शुरू की गई संस्थाओं में आज भी अनाथों और दीन दुखियों की मदद की जाती है। आज पूरे विश्व में मदर टेरेसा की सेवा भावना की मिसाल दी जाती है।

मदर टेरेसा के बारे में कुछ ऐसी बाते हैं जिसके बारे में जानकर आप आश्चर्य करेंगें। तो चलिए आपको इनमें से कुछ खास बातों के बारे में बताएंगे।

  • मदर टेरेसा को अल्बानिया, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की मानद नागरिकता प्राप्त थी।
  • भारत में मदर टेरेसा का आगमन 1929 में मेरी टेरेसा के रूप में हुआ था।
  • 1948 से वो नीली पट्टी वाली सफेद साड़ी पहनने लगी थीं। 
  • मदर टेरेसा भारत शिक्षण कार्यों के लिए आई थीं लेकिन अनाथ और कुष्ठ रोगियों को देखकर उनका हृदय परिवर्तन हो गया।
  • मदर टेरेसा 5 भाषाएं जानती थीं – अल्बानी, हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली और सर्बो क्रोट। 

बच्चों से अक्सर स्कूल में ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं जो उनके सामान्य ज्ञान से संबंधित होते हैं। नीचे हमने मदर टेरेसा के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में बताया है, इसे जरूर पढ़ें।

1. मदर टेरेसा का जन्म कब और कहां हुआ था?

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसेडोनिया में हुआ था।

2. मदर टेरेसा का असली नाम क्या था?

एग्नेस गोंकशे बोजशियु। नन बनने के बाद उन्हें मेरी टेरेसा पुकारा जाने लगा। 

3. मदर टेरेसा को संत की उपाधि कब प्रदान की गई?

कैथोलिक चर्च ने 4 सितंबर 2016 को उन्हें संत टेरेसा ऑफ कैलकटा की उपाधि प्रदान की। 

4. उन्हें भारत रत्न कब दिया गया?

यह निबंध एक महान समाज सेविका मदर टेरेसा के बारे में था जिन्होंने अपने सेवा कार्यों से लोगों को उपकृत कर दिया। इनकी जीवनी से बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। बच्चे मदर टेरेसा के निबंध से सीख सकते हैं कि हमें हमेशा अपने से गरीब और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। 

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Mother Teresa Essay in Hindi- मदर टेरेसा पर निबंध

In this article, we are providing Mother Teresa Essay in Hindi. In this essay, you get to know about Mother Teresa in Hindi. इस निबंध में आपको मदर टेरेसा के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी।

भूमिका- देश और काल की परिधि को तोड़कर, जात-पांत के बन्धनों से अलग ऊंच और नीच की भावना से रहित दिव्य आत्माएँ विश्व में दरिद्र-नारायण की सेवा कर परमपिता परमात्मा की सच्ची सेवा करते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य साधारण मानवों की भान्ति निजी शरीर और जीवन नहीं होता, यश और धन की कामना उन्हें नहीं होती है अपितु वे विशुद्ध और नि:स्वार्थ हृदय से दीन-दुखियों, दलित और पीड़ितों की सेवा करते हैं। इस प्रकार की दिव्य-आत्माओं में आज ममतामयी मूर्ति मदर टेरेसा है जिन्हें अपनी अनथक सेवा, मानवता के लिए सेवा और प्यार भरे हृदय के कारण ‘मदर’ कहा जाता है क्योंकि वे उपेक्षितों अनाथों, असहायों के लिए ‘मदर हाउस’ बनवाती हैं और उन्हें आश्रय देती हैं।

जीवन परिचय- मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. को यूगोस्लाविया के स्कोपले नामक स्थान में हुआ था। इनके बचपन का नाम आगनेस गोंवसा बेयायू था। माता-पिता अल्बानियम जाति के थे। इनके पिता एक स्टोर में स्टोर कीपर थे। बारह वर्ष की अल्प अवस्था में जब इन्होंने मिशनरियों द्वारा किए गए परोपकार और सेवा के कार्यों के सम्बन्ध में सुना तो उनके बाल-हृदय ने यह कठोर और दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह भी अपने जीवन का मार्ग लोक सेवा ही चुनेंगी। अठारह वर्ष की आयु में वे आईरेश धर्म परिवार लोरेटों में सम्मिलित हुई और इसके साथ ही आरम्भ हुआ उनके जीवन के महान् यज्ञ का आरम्भ जिसमें वे निरन्तर अनथक भाव से सेवा की आहुतियां दे रही हैं। दार्जिलिंग के सुरम्य पर्वतीय वातारवरण से वे बहुत प्रभावित हुई और सन् 1929 ई. में उन्होने कलकत्ता के सेण्टमेरी हाई स्कूल में शिक्षण कार्य आरम्भ कर दिया। इसी स्कूल में वे कुछ समय बाद  प्रधानाचार्य बनीं और स्कूल की सेवा करती रहीं। लेकिन स्कूल की छोटी सी चार दीवारी में उनका हृदय असीमित सेवा की बलवती भावना से व्याकुल रहता। वे अधिक से अधिक लोगों की सेवा के व्यापक क्षेत्र को अपनाना चाहती थी। आजीवन ही स्वयं को मानव की सेवा में समर्पित कर देने की भावना निरन्तर प्रबल और विशेष होती गई। फलस्वरूप, उन्हीं के शब्दों में-10 सितम्बर, सन् 1946 का दिन था जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी-उस समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी कि मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन ईश्वर और दरिद्र नारायण की सेवा करके कंगाल तन को समर्पित कर देना चाहिए।

जीवन लक्ष्य- इस सेवा भाव की भावना और अन्तरात्मा की आवाज़ को वे प्रभु यीशु की प्रेरणा और इस दिवस को प्रेरणा दिवस’ मानती हैं। प्रभु-यीशु के इस पावन संदेश को उन्होंने जीवन का लक्ष्य मान लिया और पोप से कलकत्ता महानगर की उपेक्षित गन्दी बस्तियों में रहकर दलितों की सेवा करने का आदेश प्राप्त कर लिया। अब पूर्ण समर्पित दृढ़ प्रतिज्ञ और अविचल रहकर उन्होंने उपेक्षित, तिरस्कृत, दलितों और पीड़ितों की सेवा का कार्य आरम्भ कर लिया। उनकी धारणा है कि मनुष्य का मन ही बीमार होता है। अनचाहा, तिस्कृत एवं उपेक्षित व्यक्ति मन से रोगी हो जाता है और जब वह मन का रोगी हो जाता है तो शारीरिक रूप से कभी भी ठीक नहीं हो पाता। जो दरिद्र है, बीमार है, तिरस्कृत और उपेक्षित है, उन्हें प्रेम और सौहार्द की आवश्यकता है। उनके प्रति प्रेम करना ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम है। उन्होंने एक बार एक सभा में कहा था-“लोगों में 20 वर्ष काम करके मैं अधिकधिक यह अनुभव करने लगी हूँ कि अनचाहा होना सबसे बुरी बीमारी है जो कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है।”

उनकी सेवा के परिणामस्वरूप कलकत्ता में एक ‘निर्मल हृदय होम स्थापित किया गया और स्लम विद्यालय खोला गया।

कलकत्ता में मौलाली क्षेत्र में जगदीश चन्द्र बसु सड़क पर अब मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का कार्यालय है जो दिन रात चौबीसों घण्टे उन व्यक्तियों की सेवा में समर्पित है जो दु:खी हैं, अपाहिज हैं, जो निराश्रित और उपेक्षित हैं, वृद्ध हैं और मृत्यु के निकट है। जिन्हें कोई नहीं चाहता हैं उन्हें मदर टेरेसा चाहती हैं जिनको लोग उपेक्षित करते हैं उन्हें उनका प्यार भरा विशाल हृदय अपना लेता है।

सन् 1950 में आरम्भ किए गये ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की आज विश्व के लगभग 83 देशों में 244 केन्द्र हैं जिनमें लगभग 3000 सिस्टर और ‘ब्रदर निरन्तर नियमित रूप में सेवा का कार्य कर रहे हैं। भारत में स्थापित लगभग 215 अस्पताल और चिकित्सा केन्द्रों में लाखों बीमार व्यक्तियों की नि:शुल्क चिकित्सा की जाती है। विश्व में गन्दी बस्तियों में चलाए जाने वाले स्कूलों में भारत में साठ स्कूल हैं। अनाथ बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण के लिए 70 केन्द्र, वृद्ध व्यक्तियों की सेवा के लिए 81 घर संचालित किए जाते हैं। कलकत्ता के कालीघाट क्षेत्र में स्थापित ‘निर्मल हृदय’ जैसी अन्य संस्थाओं में लगभग पैंतालीस हजार वृद्ध लोग रहते हैं जो जीवन के दिवस की सन्धया को सुख और शान्ति से  गुजारते हैं। मिशनरीज़ आफ चैरिटी के माध्यम से सैकड़ों केन्द्र संचालित होते हैं जिनमें हज़ारों की संख्या में बेसहारों के लिए मुफ्त भोजन व्यवस्था की जाती है। इन सभी केन्द्रों से प्रतिदिन लाखों रुपए की दवाइयों और भोजन सामग्री का वितरण किया जाता है।

पुरस्कार एवं सम्मान- पीड़ित मानवता की सेवा के अखण्ड यज्ञ को चलाने वाली मदर टेरेसा को पुरस्कार और अन्य सम्मान सम्मानित नहीं करते अपितु उनके हाथों में और उनके नाम से जुड़ कर पुरस्कार और सम्मान ही सम्मानित होते हैं। उनके द्वारा किए गए इस कार्य के लिए उन्हें विश्व भर के अनेक संस्थानों ने उन्हें सम्मान दिए हैं। सन् 1931 में उन्हें पोपजान 23वें का शान्ति पुरस्कार प्रदान किया गया। विश्व भारती विश्वविद्यालय ने सर्वोच्च पदवी देशीकोत्तम’ प्रदान की। अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से उन्हें विभूषित किया। सन् 1962 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। सन् 1964 में पोप पाल ने भारत यात्रा के दौरान उन्हें अपनी कार सौंपी जिसकी नीलामी कर उन्होंने कुष्ट कालोनी की स्थापना की। इस सूची में फिलिपाइन का रमन मैग साय पुरस्कार, पुनः पोप शान्ति पुरस्कार, गुट समारिटन एवार्ड, कनेडी फाउंडेशन एवार्ड, टेम्पलटन फाउंडेशन एवार्ड आदि पुरस्कार हैं जिनसे प्राप्त होने वाली धनराशि को उन्होंने कुष्ट आश्रम, अल्प विकसित बच्चों के लिए घर तथा वृद्ध आश्रम बनवाने में खर्च की। 19 दिसम्बर सन् 1979 में उन्हें मानव कल्याण के लिए किए गए कार्यों के लिए विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 1993 में उन्हें राजीव गांधी सद्भावन, पुरस्कार दिया गया। सेवा की साक्षात् प्रतिमा विश्व को रोता छोड़कर 6 सितम्बर, 1997 को देवलोक सिधार गई।

उपसंहार- देव-दूत, प्रभु-पुत्री, मदर टेरेसा का जीवन यज्ञ-समाधि की भान्ति है जो निरन्तर जलती है पर जिसकी ज्वाला से प्रकाश बिखरता है। मानवता की सेवा की नि:स्वार्थ साधिका ‘मदर’ माँ की ममता की ज्वलंत गाथा को प्रमाणित करती है। वह एक ही नहीं असंख्य लोगों को आश्रय और ममता, प्यार और अपनत्व देने वाली ममतामयी माँ है। ईश्वर की आराधना में वह विश्वास करती है, उसका ध्यान करती है परन्तु उसकी पूजा उसकी ही संतानों की सेवा के रूप में करती है। उनकी पवित्र प्रेरणा से प्रेरित होकर देश-विदेश से अनेक युवक और युवतियाँ उन के साथ इस सेवा-कार्य में जुट जाती हैं। आलौकिक शक्ति एवं तेज से सम्पन्न यह दिव्य आत्मा सदैव ही मानवता की सेवा के इतिहास का आकाशदीप बनी रहेगी।

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मदर टेरेसा पर निबंध

Essay On Mother Teresa In Hindi : मदर टेरेसा द्वारा किये गये कार्य सहारनीय है। मदर टेरेसा हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहती थी। हम यहां पर मदर टेरेसा पर पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में मदर टेरेसा के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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Essay On Mother Teresa In Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध | Essay On Mother Teresa In Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध (200 word).

उनका जन्म 26 अगस्त 1910 मेसेडोनिया में हुआ था। मदर टेरेसा की पिताजी जी का नाम निकोला बोयाजू और उनकी माताजी का नाम द्राना बोयाजू था। कोलकाता में जो लोग गरीब लोग कुष्ठरोग से पीड़ित थे,उन लोगों की मदर टेरेसा ने बहुत सहायता की और उन्होंने सबको यकीन दिलाया की कुष्ठरोग कोई संक्रमित रोग नहीं है। उनको अग्नेसे गोंकशे बोजाशियु के नाम से भी जाना जाता है।

मदर टेरेसा का जन्म एक ईसाई परिवार में हुआ था, फिर भी वह हिन्दू लोगों की नि:श्वार्थ भावना से गरीब लोगों की मदद करती थी। मदर टेरेसा का भारत से कोई संबंध नहीं था फिर भी उन्होंने अपना जीवन अपने लिये नहीं ,दूसरों के मदद करने में समर्पित  कर दिया। वह बहुत ही महान दयालु, समाजसेवक महिला थी। वह अपने समाज के सभी गरीबों, पीड़ित, कमज़ोर लोगों की सहायता करने में अपना पूरा सहयोग दान देती थी। मदर टेरेसा ने हमारे लिये और हमारे देश के लिये बहुत अपना सब कुछ समर्पित करके लोगों की मदद की है।

12 वर्ष की उम्र ही में उन्होंने नन बनने का फैसला लिया और 18 वर्ष की उम्र होते ही वह कोलकाता पहुंची और कोलकाता मे आइरेश नौरेटो नन मिशनरी में पहली बार शामिल हुई। फिर इसके बाद मदर टेरेसा ने कोलकाता मे मैरी हाईस्कूल आध्यपिका का पद मिला और उन्होंने 20 साल तक आध्यपिका के पद पर पूरी ईमानदरी के साथ कार्य किया।

सन 1952 में मदर टेरेसा जी ने कोलकाता गये और वहां की गरीबों की हालत देख कर उन्होंने निर्मल ह्रदय और निर्मल शिशु भवन आश्रम खोला। आश्रम खोलने पीछे कारण यह है कि अनाथ बच्चों को रहने के लिये और बीमार लोगों कि सहायता के लिये टेरेसा जी ने निर्मल ह्रदय आश्रम की स्थापना की थी।

मदर टेरेसा पर निबंध (600 Word)

मदर टेरेसा एक महान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गरीबों की सेवा में अर्पित कर दिया था। वह पूरी दुनिया में अपने अच्छे कार्यों के लिए आज भी प्रसिद्ध है और हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेगी क्योंकि वह एक सच्ची मां की तरह थी, जो एक महान किंवदंती थी। जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा करने में लगा दिया था। एक नीले बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनना उन्हें पसंद थी। वह हमेशा खुद को ईश्वर की समर्पित सेवक मानती थी, जिसको धरती पर झोपड़पट्टी समाज के गरीब असहाय और पीड़ित लोगों की सेवा के लिए भेजा गया था। उसके चेहरे पर हमेशा एक उधार मुस्कुराहट रहा करती थी।

मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन

उनका जन्म मेसिडोनिया गणराज्य के सोप्जे में 26 अगस्त 1910 में हुआ था। अग्नेसे ओंकशे बोजाशियु के रुप में उनके अभिवावकों के द्वारा जन्म के समय उनका नाम रखा गया था। वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। कम उम्र में उनके पिता की मृत्यु के बाद बुरी आर्थिक स्थिति के खिलाफ उनके पूरे परिवार ने बहुत संघर्ष किया था। वहां जांच में पार्टी के कार्य में अपने मां की मदद करनी शुरू कर दी और ईश्वर पर गहरी आस्था विश्वास और भरोसा रखने वाली महिला थी। मदर टेरेसा अपने शुरुआती जीवन से ही सभी चीजों के लिए ईश्वर का धन्यवाद करती थी। बहुत कम उम्र में उन्होंने नन बनने का फैसला कर लिया और जल्द ही आयरलैंड में लैट्रिन में जुड़ गई और अपने बाद के जीवन में उन्होंने भारत में शिक्षा के क्षेत्र और एक शिक्षक के रूप में कई वर्षों तक सेवा की थी।

मदर टेरेसा का दार्जिलिंग के नवशिक्षित लौरेटो मैं शामिल होना

दार्जिलिंग के नवशिक्षित लौरेटो में एक आरंभक के रुप में उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की, जहाँ मदर टेरेसा ने अंग्रेजी और बंगाली (भारतीय भाषा के रुप में) का चयन सीखा। इस वजह से उन्हें बंगाली टेरेसा भी कहा जाता है। दुबारा वो कोलकाता लौटी, जहाँ भूगोल की शिक्षिका के रुप में सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाया। एक बार जब वो अपने रास्ते में थी, उन्होंने मोतीझील झोपड़-पट्टी में रहने वाले लोगों की बुरी स्थिति पर ध्यान दिया। ट्रेन के द्वारा दार्जिलिंग के उनके रास्ते में ईश्वर से उन्हें एक संदेश मिला कि जरुरतमंद लोगों की मदद करो। जल्द ही उन्होंने आश्रम को छोड़ा और उस झोपड़-पट्टी के गरीब लोगों की मदद करनी शुरु कर दी। एक यूरोपियन महिला होने के बावजूद वो एक हमेशा बेहद सस्ती साड़ी पहनती थी।

मदर टेरेसा एक शिक्षिका के रूप में

उन्होंने कुछ गरीब बच्चों को इकट्ठा किया और एक छड़ी से जमीन पर बंगाली अक्षर लिखने की शुरुआत की, इस तरह मदर टेरेसा ने अपने शिक्षिका जीवन की शुरुआत की। जल्द ही उन्हें अपनी महान सेवा के लिए कुछ शिक्षकों द्वारा प्रोत्साहित किया जाने लगा और उन्हें एक ब्लैक बोर्ड और कुर्सी उपलब्ध करवाई गई। धीरे धीरे उन्हें स्कूल के लिए मकान भी दिया गया। बाद में एक चिकित्सालय और एक शांतिपूर्ण घर की स्थापना की, जहां गरीब का इलाज होना आरंभ हुआ। वह अपने महान कार्य के लिए प्रसिद्ध हो गई। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिए उन्हें सितंबर 2016 में संत की उपाधि से नवाजा गया ।

मदर टेरेसा अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया और उन्होंने मुख्य रूप से गरीब और झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगों की बहुत मदद की। उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाया और वह हम सबके लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा की स्रोत बन गई।

मदर टेरेसा पर निबंध( Essay On Mother Teresa In Hindi) के बारे में जानकारी हमने इस आर्टिकल में आप तक पहुचाई है। मुझे उम्मीद है, की इस आर्टिकल में हमने जो जानकारी आप तक पहुंचाई है। वह आप को अच्छी लगी होगी। यदि किसी व्यक्ति को इस आर्टिकल से सम्बंधित कोई सवाल या सुझाव है। तो वह हमें कमेंट में बता सकता है।

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मदर टैरेसा का संक्षिप्त परिचय – Mother Teresa Biography in Hindi

मदर टेरेसा (Mother Teresa) (एग्नेस गोनक्शा बोजाक्शिहउ)
26 अगस्त, 1910
यूगोस्लाविया
5 सितंबर, 1997
कलकत्ता
निकोला बोयाजू
द्राना बोयाजू
समाजसेवा
रोमन कॅथोलिसिस्म
भारतीय
पद्मश्री,  ,  , मेडल आफ़ फ्रीडम।

प्रेरणादायी मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। उन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी। उनका असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ (Agnes Gonxha Bojaxhiu ) था। अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। सच ही तो है कि मदर टेरेसा एक ऐसी कली थीं जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही गरीबों और असहायों की जिन्दगी में प्यार की खुशबू भरी थी।

मदर टेरेसा का जन्म – Early Life of Mother Teresa 

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे शहर (Skopje, capital of the Republic of Macedonia) में हुआ था। उनका जन्म 26 अगस्त को हुआ था पर वह खुद अपना जन्मदिन 27 अगस्त मानती थीं। मदर टेरेसा का असली नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ (Agnes Gonxha Bojaxhiu ) था। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू और माता का नाम द्राना बोयाजू था।

मदर टेरेसा के पिता उनके बचपन में ही मर गए, बाद में उनका लालन-पालन उनकी माता ने किया। पांच भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थीं और उनके जन्म के समय उनकी बड़ी बहन आच्च की उम्र 7 साल और भाई की उम्र 2 साल थी। बाकी दो बच्चे बचपन में ही गुजर गए थे।

मदर टेरेसा एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढाई के साथ-साथ, गाना उन्हें बेहद पसंद था। वह और उनकी बहन पास के गिरजाघर में मुख्य गायिका थीं। ऐसा माना जाता है की जब वह मात्र बारह साल की थीं तभी उन्हें ये अनुभव हो गया था कि वो अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगायेंगी और 18 साल की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। तत्पश्चात वह आयरलैंड गयीं जहाँ उन्होंने अंग्रेजी भाषा सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरुरी था क्योंकि ‘लोरेटो’ की सिस्टर्स इसी माध्यम में बच्चों को भारत में पढ़ाती थीं।

मदर टेरेसा का भारत आगमन 

1925 में युगोस्लाविया की ईसाई मिशनरियों का एक दल सेवा कार्य हेतु भारत आया। उसने यहाँ की गरीबी और कष्टों के बारे मे अपने देश को एक ख़त लिखा। जिसमे सहायता की मांग की गयी थी। पत्र को पढ़कर अग्नेसे स्वयं को रोक नहीं सकी और सिस्टर टेरेसा तीन अन्य सिस्टरों के साथ आयरलैंड से एक जहाज में बैठकर 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं।

वह बहुत ही अच्छी अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी उन्हें बहुत प्यार करते थे। वर्ष 1944 में वह सेंट मैरी स्कूल की प्रिंसिपल बन गईं। मदर टेरेसा ने आवश्यक नर्सिग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और वहां से पहली बार तालतला गई, जहां वह गरीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रहीं। उन्होंने मरीजों के घावों को धोया, उनकी मरहमपट्टी की और उनको दवाइयां दीं।

सन् 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे 7 अक्टूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं। जिन्हें समाज ने बाहर निकाल दिया हो, ऐसे लोगों पर इस महिला ने अपनी ममता व प्रेम लुटाकर सेवा भावना का परिचय दिया।

मदर टेरेसा का मृत्यु 

उम्र के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता गया। वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा। उस समय मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। इसके पश्चात वर्ष 1989 में उन्हें दूसरा हृदयाघात आया और उन्हें कृत्रिम पेसमेकर लगाया गया। साल 1991 में मैक्सिको में न्यूमोनिया के बाद उनके ह्रदय की परेशानी और बढ़ गयी। इसके बाद उनकी सेहत लगातार गिरती रही। 13 मार्च 1997 को उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के मुखिया का पद छोड़ दिया और 5 सितम्बर, 1997 को उनकी मौत हो गई।

उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में कार्यरत थीं। मानव सेवा और ग़रीबों की देखभाल करने वाली मदर टेरेसा को पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में “धन्य” घोषित किया।

इसके बाद 4 सितंबर को मदर टेरेसा को संत की उपाधि प्रदान की गई। जीते-जी 124 बड़े पुरस्कारों से सम्मानित टेरेसा को निधन के बाद यह सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है। भारत रत्न और नोबेल पुरस्कार जीतने वाली वह पहली महिला हैं, जिन्हें वेटिकन में ईसाई समुदाय के धर्म गुरुओं ने संत घोषित किया है। टेरेसा को संत की उपाधि देने के बाद पोप फ्रांसिस ने कहा- “उन्हें संत टेरेसा कहने में कुछ मुश्किल है, उनकी पवित्रता और मासूमियत हमारे बेहद करीब है। इसलिए हम तो उन्हें मदर ही कहेंगे।

समाजसेवा – Mother Teresa

मदर टेरेसा जब भारत आईं तो उन्होंने यहाँ बेसहारा और विकलांग बच्चों तथा सड़क के किनारे पड़े असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आँखों से देखा और फिर वे भारत से मुँह मोड़ने का साहस नहीं कर सकीं। वे यहीं पर रुक गईं और जनसेवा का व्रत ले लिया, जिसका वे अनवरत पालन करती रहीं। मदर टेरेसा ने भ्रूण हत्या के विरोध में सारे विश्व में अपना रोष दर्शाते हुए अनाथ एवं अवैध संतानों को अपनाकर मातृत्व-सुख प्रदान किया। उन्होंने फुटपाथों पर पड़े हुए रोत-सिसकते रोगी अथवा मरणासन्न असहाय व्यक्तियों को उठाया और अपने सेवा केन्द्रों में उनका उपचार कर स्वस्थ बनाया, या कम से कम उनके अन्तिम समय को शान्तिपूर्ण बना दिया। दुखी मानवता की सेवा ही उनके जीवन का व्रत है।

पुरस्कार और सम्मान  – Mother Teresa Awards 

1) पद्मश्री (1962) 2) सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’(1980) 3) संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें वर्ष 1985 में मेडल आफ़ फ्रीडम से नवाजा (1985) 4) मानव कल्याण के लिए किये गए कार्यों की वजह से मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार मिला (1979) 5) 4 सितंबर को मदर टेरेसा को संत की उपाधि प्रदान की गई

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2 thoughts on “मदर टैरेसा की प्रेरणादायी जीवनी | mother teresa biography in hindi”.

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Good job I am Indian but I relif to mother ‍ Teresa ❣☝☝☝☝☝☝ India ♥ ❤ ♥ ❤ ♥ ❤ ♥ ❤

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मदर टेरेसा पर निबन्ध | Mother Teresa Essay in Hindi | Essay in Hindi | Hindi Nibandh | हिंदी निबंध | निबंध लेखन | Essay on Mother Teresa in Hindi

By: savita mittal

मदर टेरेसा पर निबन्ध | Mother Teresa Essay in Hindi | जीवन परिचय

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ऐसा कहा जाता है कि जब ईश्वर का धरती पर अवतरित होने का मन हुआ, तो उन्होंने माँ का रूप धारण कर लिया। ऐसा माने जाने का कारण भी बिल्कुल स्पष्ट है दुनिया की कोई भी माँ अपने बच्चों की न केवल जन्मदात्री होती हैं, उनके लिए उसका प्रेम अलौकिक एवं ईश्वरीय होता है, इसलिए माँ को ईश्वर का सच्चा रूप कहा जाता है। दुनिया में बहुत कम ऐसी माँ हुई हैं, जिन्होंने अपने बच्चों के अतिरिक्त भी दूसरों को अपनी ममतामयी छाँप प्रदान की।

किसी से इस सम्पूर्ण जगत की एक ऐसी माँ का नाम पूछा जाए, जिसने बिना भेदभाव के सबको मातृषत्-स्नेह प्रदान किया, तो प्रत्येक की जुबाँ पर केवल एक ही नाम आएगा- ‘मदर टेरेसा’ मदर टेरेसा एक ऐसा नाम है, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन सेवा हेतु समर्पित कर दिया।

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मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को एक अल्बानियाई परिवार में कुल नामक स्थान पर हुआ था, जो अब मेसिडोनिया गणराज्य में है। उनके बचपन का नाम अगनेस गाोंजा बोयाजिजू था। जब ये मात्र 9 वर्ष की थीं, उनके पिता निकोला बोयाजू के देहान्त के पश्चात् उनकी शिक्षा की जिम्मेदारी उनकी माँ के ऊपर आ गई।

उन्हें बचपन में पढ़ना, प्रार्थना करना और चर्च में जाना अच्छा लगता था, इसलिए वर्ष 1928 में वे आयरलैण्ड की संस्था ‘सिटर्स ऑफ लॉरेटो में शामिल हो गई, जहाँ सोलहवीं सदी के एक प्रसिद्ध सन्त के नाम पर उनका नाम टेरेसा रखा गया और बाद में लोगों के प्रति ममतामयी व्यवहार के कारण जब दुनिया ने उन्हें ‘मदर’ कहना शुरू किया, तब वे ‘मदर टेरेसा’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।

धार्मिक जीवन की शुरुआत के बाद वे इससे सम्बन्धित कई विदेश यात्राओं पर गईं। इसी क्रम में वर्ष 1929 की शुरुआत में वे मद्रास (भारत) पहुंची। फिर उन्हें कलकत्ता में शिक्षिका बनने हेतु अध्ययन करने के लिए भेजा गया। अध्यापन का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वे कलकत्ता के लोरेटो एटली स्कूल में अध्यापन कार्य करने लगी तथा अपनी कर्तव्यनिष्ठा एवं योग्यता के बल पर प्रधानाध्यापिका के पद पर प्रतिष्ठित हुई। प्रारम्भ में कलकत्ता में उनका निवास फिक लेन में था, किन्तु बाद में वे सर्कुलर रोड स्थित आवास में रहने लगी। वह आवास आज विश्वभर में ‘मदर हाउस’ के नाम से जाना जाता है।

अध्यापन कार्य करते हुए मदर टेरेसा को महसूस हुआ कि ये मानवता की सेवा के लिए इस पृथ्वी पर अवतरित हुई है। इसके बाद उन्होंने अपना जीवन मानव-सेवा हेतु समर्पित करने का निर्णय लिया। मदर टेरेसा किसी भी गरीब, असहाय लाचार को देखकर उसकी सेवा करने के लिए तत्पर हो जाती थी तथा आवश्यकता पड़ने पर वे बीमार एवं लाचारों की स्वास्थ्य सेवा एवं मदद करने से भी नहीं चूकती थी, इसलिए उन्होंने बेसाहारा लोगों के दुःख दूर करने का महान् व्रत लिया। बाद में ‘नन’ के रूप में उन्होंने मानव सेवा की शुरुआत की एवं भारत की नागरिकता भी प्राप्त की।

यहाँ पढ़ें :   अमर शहीद भगत सिंह पर निबन्ध

Mother Teresa Essay in Hindi

मदर टेरेसा ने कलकत्ता को अपनी कार्यस्थली के रूप में चुना और निर्धनों एवं बीमार लोगों की सेवा करने के लिए। वर्ष 1950 में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ नामक संस्था की स्थापना की। इसके बाद वर्ष 1952 में कुष्ठ रोगियों, नशीले पदार्थों की लत के शिकार लोगों तथा दीन-दुखियों की सेवा के लिए कलकत्ता में काली घाट के पास ‘निर्मल हृदय’ तथा ‘निर्मला शिशु भवन’ नामक संस्था बनाई। यह संस्था उनकी गतिविधियों का केन्द्र बनी। विश्व के 120 से अधिक देशों में इस संस्था की कई शाखाएँ हैं, जिनके अन्तर्गत लगभग 200 विद्यालय, एक हज़ार से अधिक उपचार केन्द्र तथा लगभग एक हजार आश्रय गृह संचालित है।

दीन-दुखियों के प्रति उनकी सेवा-भावना ऐसी थी कि इस कार्य के लिए वे सड़कों एवं गली-मुहल्लों से उन्हें खुद ढूंढकर लाती थीं। उनके इस कार्य में उनकी सहयोगी अन्य सिस्टर्स भी मदद करती थी। जब उनकी सेवा भावना की बात दूर-दूर तक पहुँची, तो लोग खुद उनके पास सहायता के लिए पहुँचने लगे। अपने जीवनकाल में उन्होंने लाखों दरिद्रों, असहायों एवं बेसाहारा बच्चों व बूढ़ों को आश्रय एवं सहारा दिया।

यहाँ पढ़ें :  जनरेशन गैप पर निबंध

मदर टेरेसा को उनकी मानव-सेवा के लिए विश्व के कई देशों एवं संस्थाओं ने सम्मानित किया। वर्ष 1962 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया। वर्ष 1973 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 1979 में उन्हें ‘शान्ति का नोबेल पुरस्कार’ प्रदान किया गया। वर्ष 1980 में भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। वर्ष 1988 में ब्रिटेन की महारानी द्वारा उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ मेरिट’ प्रदान किया गया।

वर्ष 1992 में उन्हें भारत सरकार ने ‘राजीव गाँधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित किया। वर्ष 1998 में उन्हें ‘यूनेस्को शान्ति पुरस्कार’ प्रदान किया गया। वर्ष 1962 में मदर टेरेसा को ‘रैमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त हुआ। इन पुरस्कारों के अतिरिक्त भी उन्हें अन्य कई पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए।

यद्यपि उनके जीवन के अन्तिम समय में कई बार क्रिस्टोफर हिचेन्स, माइकल परेंटी, विश्व हिन्दू परिषद् आदि द्वारा उनकी आलोचना की गई तथा आरोप लगाया गया कि वह गरीबों की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलवाकर ईसाई बनाती है।

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पश्चिम बंगाल में उनकी निन्दा की गई। मानवता की रखवाली की आड़ में उन्हें ईसाई धर्म का प्रचारक भी कहा जाता था। उनकी धर्मशालाओं में दी जाने वाली चिकित्सा सुरक्षा के मानकों की आलोचना की गई तथा उस अपारदर्शी प्रकृति के बारे में सवाल उठाए गए, जिसमें दान का धन खर्च किया जाता था, किन्तु यह सत्य है कि जहाँ सफलता होती है, वहाँ आलोचना होती ही है। वस्तुतः मदर टेरेसा आलोचनाओं से परे थी।

वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा रोम में पोप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने गई, उन्हें वहीं पहला हृदयाघात आया। वर्ष 1989 में दूसरा हृदयाघात आया 5 सितम्बर, 1997 को 87 वर्ष की अवस्था में उनकी कलकत्ता में मृत्यु हो गई। आज वे हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनके द्वारा स्थापित संस्थाओं में आज भी उनके ममतामयी स्नेह को महसूस किया जा सकता है।

वहां होते हुए ऐसा लगता है मानो मदर हमें छोड़कर गई नहीं है, बल्कि अपनी संस्थाओं और अनुयायियों के रूप में हम सबके साथ है। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए दिसम्बर, 2002 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें धन्य घोषित करने की स्वीकृति दी तथा 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में सम्पन्न एक समारोह में उन्हें धन्य घोषित किया गया। इसी प्रकार पोप फ्रांसिस ने इन्हें वर्ष 2016 में सन्त घोषित किया।

वर्ष 2017 में इनकी साड़ी को बौद्धिक सम्पदा किया गया तथा वर्तमान में इनकी जीवनी पर फिल्में भी बनाने की बात कही जा रही है। अतः यह कहा जा सकता है कि उन्होंने पूरी निष्ठा से न केवल बेसाहारा लोगों की निःस्वार्थ सेवा की, बल्कि विश्व शान्ति के लिए भी सदा प्रयत्नशील रहीं। उनका सम्पूर्ण जीवन मानव-सेवा में बीता। वे स्वभाव में ही अत्यन्त स्नेहमयी, ममतामयी एवं व्यक्तित्व थी। वह ऐसी शख्सियत थीं, जिनका जन्म लाखों-करोड़ों वर्षों में एक बार होता है।

अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर निबंध

reference Mother Teresa Essay in Hindi

mother teresa essay hindi

मेरा नाम सविता मित्तल है। मैं एक लेखक (content writer) हूँ। मेैं हिंदी और अंग्रेजी भाषा मे लिखने के साथ-साथ एक एसईओ (SEO) के पद पर भी काम करती हूँ। मैंने अभी तक कई विषयों पर आर्टिकल लिखे हैं जैसे- स्किन केयर, हेयर केयर, योगा । मुझे लिखना बहुत पसंद हैं।

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मदर टेरेसा पर निबंध

mother teresa essay hindi

By विकास सिंह

essay on mother teresa in hindi

मदर टेरेसा पर छोटा निबंध, short essay on mother teresa in hindi (100 शब्द)

मदर टेरेसा एक महान महिला थीं और “एक महिला, एक मिशन” के रूप में प्रसिद्ध थीं जिन्होंने दुनिया को बदलने के लिए एक बड़ा कदम उठाया था। वह 26 अगस्त 1910 को मैसेडोनिया में पैदा हुई थीं। जब वह महज 18 साल की थीं, तब वह कोलकाता आईं और अपने जीवन भर सबसे गरीब लोगों की देखभाल के मिशन को जारी रखा।

उन्होंने कुष्ठ रोग से पीड़ित कोलकाता के गरीब लोगों की बहुत मदद की थी। उसने उन्हें यकीन दिलाया कि यह एक छूत की बीमारी नहीं है और इसे दूसरे तक नहीं पहुँचाया जा सकता है। उसने उन्हें टीटागढ़ में अपना स्वयं की सहायक कॉलोनी बनाने में मदद की।

मदर टेरेसा पर निबंध, essay on mother teresa in hindi (150 शब्द)

मदर टेरेसा एक महान कार्यकाल की महिला थीं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन ज़रूरतमंदों और गरीब लोगों की मदद करने में लगा दिया। उनका जन्म 26 अगस्त को 1910 में मैसिडोनिया में हुआ था। उसका जन्म का नाम एग्नेस ग्नोची बोजाक्सहिन था। वह निकोला और द्रोणदा बोजाक्सीहु की सबसे छोटी संतान थी।

वह ईश्वर और मानवता में दृढ़ विश्वास रखने वाली महिला थीं। उसने अपने जीवन का बहुत समय चर्च में बिताया था लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन नन होगी। बाद में वह डबलिन से लोरेटो बहनों में शामिल हो गईं, जहां उन्हें लिस्से के सेंट टेरेसा के नाम पर मदर टेरेसा का नाम मिला।

उसने डबलिन में अपना काम पूरा कर लिया था और भारत के कोलकाता में आ गई, जहाँ उसने अपना पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंद लोगों की मदद करने में लगा दिया। उन्होंने अपने जीवन के 15 वर्षों का भूगोल और इतिहास पढ़ाने में आनंद लिया और फिर लड़कियों के लिए सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया। उसने उस क्षेत्र के सबसे गरीब लोगों को पढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की।

मदर टेरेसा पर निबंध, essay on mother teresa in hindi (200 शब्द)

मदर टेरेसा एक महान और अविश्वसनीय महिला थीं। वह ऐसी महिला थी जिसने इस दुनिया को मानवता का वास्तविक धर्म दिखाया। वह मैसेडोनिया गणराज्य के स्कोपजे में पैदा हुई थी लेकिन उसने भारत के गरीब लोगों की मदद करने के लिए चुना। वह मानव जाति के लिए प्यार, देखभाल और सहानुभूति से भरी थी।

वह हमेशा मानती थी कि परमेश्वर ने लोगों की मदद करने में कड़ी मेहनत की है। वह सामाजिक मुद्दों और गरीब लोगों के स्वास्थ्य के मुद्दों को हल करने में शामिल थी। वह कैथोलिक विश्वास के बहुत मजबूत परिवार में पैदा हुई थी और उसे अपने माता-पिता से पीढ़ी में मजबूती और शक्ति मिली।

वह एक बहुत ही अनुशासित महिला थी जिसने गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करके ईश्वर की तलाश की। उसकी प्रत्येक जीवन गतिविधि ईश्वर के चारों ओर घूमती थी। वह भगवान के बहुत करीब थी और प्रार्थना करने से कभी नहीं चूकती थी। वह मानती थी कि प्रार्थना उसके जीवन का बहुत जरूरी हिस्सा है और प्रार्थना में घंटों बिताती थी।

वह ईश्वर के प्रति बहुत आस्थावान थी। उसके पास बहुत पैसा नहीं था, लेकिन उसके पास ध्यान, आत्मविश्वास, विश्वास और ऊर्जा थी जिसने उसे गरीब लोगों को खुशी से समर्थन देने में मदद की। वह गरीब लोगों की देखभाल के लिए सड़कों पर लंबी दूरी तक नंगे पैर चलती थी। कड़ी मेहनत और निरंतर काम ने उन्हें बहुत थका दिया लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

मदर टेरेसा पर निबंध, essay on mother teresa in hindi (250 शब्द)

मदर टेरेसा एक महान महिला थीं, जिन्हें उनके अद्भुत कार्यों और उपलब्धियों के लिए दुनिया भर में हमेशा लोगों द्वारा प्रशंसा और सम्मान दिया जाता है। वह एक महिला थीं, जिन्होंने बहुत से लोगों को अपने जीवन में असंभव काम करने के लिए प्रेरित किया था। वह हमेशा हमारे लिए प्रेरणास्रोत रहेंगी।

यह दुनिया महान मानवतावादियों वाले अच्छे लोगों से भरी हुई है लेकिन सभी को आगे बढ़ने के लिए एक प्रेरणा की आवश्यकता है। मदर टेरेसा अद्वितीय थीं जो हमेशा भीड़ से अलग रहती थीं। वह 26 अगस्त को 1910 में मैसिडोनिया के स्कोप्जे में पैदा हुई थी।

उनका जन्म के के समय नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहु था, लेकिन आखिरकार उसे अपने महान कार्यों और जीवन की उपलब्धि के बाद मदर टेरेसा का दूसरा नाम मिला। उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब और बीमार लोगों को एक असली माँ के रूप में देखभाल करके बिताया था। वह अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी।

उनका जन्म अत्यधिक धार्मिक रोमन कैथोलिक परिवार में हुआ था। वह अपने माता-पिता से दान के बारे में बहुत प्रेरित थी जो हमेशा समाज में जरूरतमंद लोगों का समर्थन करते थे। उसकी माँ एक साधारण गृहिणी थी लेकिन पिता एक व्यापारी थे। राजनीति में शामिल होने के कारण उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई।

ऐसी हालत में, चर्च उसके परिवार के जीवित रहने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया। उसकी 18 साल की उम्र में उसे लगा कि धार्मिक जीवन की ओर उसका कोई आह्वान है और फिर वह डबलिन की लोरेटो सिस्टर्स में शामिल हो गई। इस तरह उसने गरीब लोगों की मदद करने के लिए अपना धार्मिक जीवन शुरू कर दिया था।

मदर टेरेसा पर निबंध, essay on mother teresa in hindi (300 शब्द)

mother teresa

मदर टेरेसा एक बहुत ही धार्मिक और प्रसिद्ध महिला थीं, जिन्हें “गटर के संत” के रूप में भी जाना जाता है। वह दुनिया भर में एक महान व्यक्तित्व हैं। उन्होंने भारतीय समाज के जरूरतमंद और गरीब लोगों को पूर्ण समर्पण और प्रेम की तरह की सेवाएं प्रदान करके एक सच्ची मां के रूप में हमारे सामने अपने पूरे जीवन का प्रतिनिधित्व किया था। वह लोकप्रिय रूप से “हमारे समय के संत” या “परी” या “अंधेरे की दुनिया में एक बीकन” के रूप में भी जानी जाती हैं।

उनका जन्म का नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहु था जो अपने महान कार्यों और जीवन की उपलब्धियों के बाद बाद में मदर टेरेसा के रूप में प्रसिद्ध हुईं। उनका जन्म 26 अगस्त को 1910 में स्कोप्जे, मैसेडोनिया में एक धार्मिक कैथोलिक परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा को कम उम्र में ही नन बनने का फैसला कर लिया गया था।

वह वर्ष 1928 में एक कॉन्वेंट में शामिल हुईं और फिर भारत आईं (दार्जिलिंग और फिर कोलकाता)। एक बार, जब वह अपनी यात्रा से लौट रही थी, तो वह चौंक गई और कोलकाता की एक झुग्गी में लोगों के दुःख को देखकर उसका दिल टूट गया। उस घटना ने उसके मन को बहुत परेशान किया और उसे कई रातों की नींद हराम कर दी।

वह झुग्गी में पीड़ित लोगों को कम करने के लिए कुछ तरीके सोचने लगी। वह अपने सामाजिक प्रतिबंधों के बारे में अच्छी तरह से जानती थी इसलिए उसने कुछ मार्गदर्शन और दिशा पाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। अंत में उन्हें 1937 में 10 सितंबर को दार्जिलिंग जाने के लिए भगवान से एक संदेश (कॉन्वेंट छोड़ने और जरूरतमंद लोगों की सेवा करने) मिला।

इसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और गरीब लोगों की सेवा करना शुरू कर दिया। उसने नीले रंग की बॉर्डर वाली सफेद साड़ी पहनने के लिए चुना। जल्द ही, युवा लड़कियों ने गरीब समुदाय के पीड़ित लोगों को एक तरह की सहायता प्रदान करने के लिए उसके समूह में शामिल होना शुरू कर दिया।

उसने बहनों का एक समर्पित समूह बनाने की योजना बनाई, जो किसी भी हालत में गरीबों की सेवा के लिए हमेशा तैयार रहेगा। समर्पित बहनों के समूह को बाद में “मिशनरीज ऑफ चैरिटी” के रूप में जाना जाता है।

मदर टेरेसा पर निबंध, long essay on mother teresa in hindi (400 शब्द)

मदर टेरेसा एक महान व्यक्तित्व थीं जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीब लोगों की सेवा में लगा दिया। वह अपने महान कार्यों के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती हैं। वह हमेशा हमारे दिल में जीवित रहेगी क्योंकि वह एक असली माँ की तरह अकेली थी। वह हमारे समय की सहानुभूति और देखभाल का एक महान किंवदंती और उच्च पहचानने योग्य प्रतीक है।

नीले रंग की बॉर्डर वाली बेहद साधारण सफेद साड़ी में वह उसे पहनना पसंद करती थी। वह हमेशा खुद को उस ईश्वर का समर्पित सेवक समझती थी, जिसने झुग्गी समाज के गरीब, विकलांग और पीड़ित लोगों की सेवा के लिए धरती पर भेजा था। उसके चेहरे पर हमेशा एक तरह की मुस्कान थी।

वह 26 अगस्त को 1910 में मैसेडोनिया गणराज्य के स्कोप्जे में पैदा हुई थीं और अपने माता-पिता के रूप में उनका जन्म नाम एग्नेस गोंक्सा बाजाक्सिन के रूप में हुआ। वह अपने माता-पिता की छोटी संतान थी। कम उम्र में अपने पिता की मृत्यु के बाद खराब वित्तीय स्थिति के लिए उनके परिवार ने बहुत संघर्ष किया।

उसने चर्च में चैरिटी के कामों में अपनी माँ की मदद करना शुरू कर दिया। वह ईश्वर पर गहरी आस्था, विश्वास की महिला थीं। वह हमेशा अपने जीवन की शुरुआत से भगवान की प्रशंसा करती है जो उसे मिला और खो दिया। उसने अपनी कम उम्र में एक समर्पित नन बनने का फैसला किया और जल्द ही आयरलैंड में ननों के लोरेटो ऑर्डर में शामिल हो गई। अपने बाद के जीवन में उन्होंने भारत में शिक्षा क्षेत्र में एक शिक्षक के रूप में कई वर्षों तक सेवा की।

उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत लोरेटो नोवित्ते, दार्जिलिंग में एक शुरुआत के रूप में की थी, जहाँ उन्होंने अंग्रेजी और बंगाली (भारतीय भाषा के रूप में) को चुना था, इसीलिए उन्हें बंगाली टेरेसा भी कहा जाता है। फिर से वह कलकत्ता लौट आई जहाँ वह भूगोल की शिक्षिका के रूप में सेंट मैरी स्कूल में शामिल हुई।

एक बार, जब वह अपने रास्ते पर थी, तो उसने मोतीझील झुग्गी में रहने वाले लोगों की बुरी स्थितियों पर ध्यान दिया। उसे ट्रेन से दार्जिलिंग के रास्ते में भगवान की ओर से एक संदेश भेजा गया था, ताकि जरूरतमंद लोगों की मदद की जा सके। जल्द ही, उसने कॉन्वेंट छोड़ दिया और उस स्लम के गरीबों की मदद करना शुरू कर दिया।

यूरोपीय महिला होने के बाद भी, उन्होंने हमेशा एक सस्ती सफेद साड़ी पहनी थी। अपने शिक्षण जीवन की शुरुआत में, उन्होंने कुछ गरीब बच्चों को इकट्ठा किया और लाठी से जमीन पर बंगाली वर्णमाला लिखना शुरू किया। जल्द ही उसे कुछ शिक्षकों द्वारा उसकी महान सेवाओं के लिए प्रसन्न किया गया और एक ब्लैकबोर्ड और एक कुर्सी प्रदान की गई।

जल्द ही, वहां एक वास्तविक स्कूल बन गया। बाद में, उन्होंने एक औषधालय और एक शांतिपूर्ण घर की स्थापना की, जहाँ गरीब मर सकते थे। अपने महान कार्यों के लिए, जल्द ही वह गरीबों के बीच प्रसिद्ध हो गई।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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मदर टेरेसा पर निबंध – Mother Teresa Essay in Hindi

Mother Teresa Essay in Hindi

Mother Teresa Essay in Hindi: मदर टेरेसा एक बहुत ही महान महिला थी, जिन्होने अपना पूरा जीवन मानवता की भलाई में लगा दिया था। मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में मां की भावनाएं उमड़ पड़ती है। मदर टेरेसा मानवता की एक जीती-जागती मिसाल थी। उन्होने कुष्ठरोग से पीड़ित गरीब लोगों की बहुत मदद की। इसके अलावा गरीब बच्चों को पढ़ाने, और अनाथ बच्चों की देखभाल का काम भी किया।

मदर टेरेसा का जन्म मैसेडोनिया में हुआ था, लेकिन उन्हे पढ़ाई के लिए 1929 में, भारत के कोलकाता शहर में भेजा गया। इसके बाद 1948 में मदर टेरेसा ने स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ली। आज मदर टेरेसा को पूरी दुनिया में एक मां के रूप में याद किया जाता है।

इस आर्टिकल में, मैं आपको मदर टेरेसा के बारे में सभी जानकारी दूंगा, जिससे आप एक अच्छा Mother Teresa Essay in Hindi में लिख सकते है।

मदर टेरेसा पर निबंध – Mother Teresa Essay in Hindi

मदर टेरेसा एक बहुत ही महान महिला है जो पूरे विश्व के लिए मानवता की प्रेरणा स्रोत है। उन्होने अपने पूरे जीवन में केवल दूसरो की मदद की। उनका जन्म मैसेडोनिया में हुआ था, लेकिन उन्होने स्वेच्छा से 1948 में भारतीय नागरिकता प्राप्त की। उन्होने भारत के कोलकाता शहर में गरीब, असहाय और अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए “मिशनरी ऑफ चैरिटी” की स्थापना की थी।

मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय और रोगी लोगों की काफी मदद की। उन्होने गरीब बच्चों के लिए स्कूल और अनाथ बच्चों के लिए अनाथालय भी खोले। मदर टेरेसा को मानवता के प्रति सेवाओं के लिए नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न भी दिया गया। मानवता के प्रति उनकी सेवाएं पूरे विश्व में सरहानिय थी।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 में मैसेडोनिया के स्कोप्जे शहर में एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा का पूरा और असली नाम “ अगनेस गोंझा बोयाजिजू ” है। इनके पिता का नाम “ निकोला बोयाजू ” और माता का नाम “ द्राना बोयाजू ” था।

मदर टेरेसा के परिवार में 5 भाई-बहन थे, जिसमें से सबसे छोटी मदर टेरेसा ही थी। टेरेसा एक सुन्दर, अध्ययनशील और परीश्रमी लड़की थीं, जिसे पढ़ना और गीत गाना काफी पसंद था। लेकिन बाद में उन्हे अनुभव हुआ वे अपना पूरा जीवन मानव सेवा में लगाएंगी। इसके बाद उन्होने मानवता के लिए सेवा शुरू कर दी और पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनना भी शुरू कर दिया।

मदर टेरेसा की पढ़ाई – लिखाई

मदर टेरेसा ने अपनी स्कूली शिक्षा लोरेटो कान्वेंट , स्कोप्जे में प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होने 1928 में आयरलैंड के लोरेटो कान्वेंट में नन बनने के लिए प्रवेश लिया, तब उनका नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू नाम रखा गया। इसके बाद उन्हे भारत के कोलकाता शहर में भेज दिया गया, जहां उन्होने 1929 से 1931 तक सेंट टेरेसा स्कूल में शिक्षा के रूप में काम किया।

सन् 1931 में, मदर टेरेसा ने नोविसिएट में प्रवेश लिया, जो नन बनने के लिए ट्रेनिंग का पहला चरण है। उन्होने 1937 में अपनी पहली प्रतिज्ञा ली थी और फिर 1938 में सेंट मेरी हाई स्कूल में टिचर के रूप में काम शुरू किया।

1946 में, मदर टेरेसा को महसूस हुआ कि उन्हे गरीब और असहाय लोगों की मदद करनी चाहिए। इसके बाद उन्होने 1948 में कोलकाता में मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जो एक कैथोलिक धार्मिक संस्थान है।

मदर टेरेसा का भारत में आगमन

सन् 1929 में मदर टेरेसा भारत आयी थी और उन्होने 1931 तक सेंट टेरेसा स्कूल में टिचर के रूप में काम किया। उन्होने 1938 में सेंट मेरी हाई स्कूल में भी टिचर का काम किया था। इसके बाद मदर टेरेसा ने 1948 में कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जो गरीबों, बीमारों, अनाथों और मरने वाले लोगों की सेवा करता है।

मदर टेरेसा की शिक्षा ने सभी लोगों को दूसरों की सेवा करने के लिए प्रेरित किया। उन्होने बहुत सारे स्कूल और अनाथालय बनाए, और लोगों की मदद की। उनकी मिशनरीज संस्था ने 1996 तक करीब 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले। टेरेसा ने “निर्मल हृद्य” और निर्मला शिशु भवन” के नाम आश्रम भी खोले।

मिशनरी ऑफ चैरिटी

मिशनरीज ऑफ चैरिटी (MoC) की स्थापना 7 अक्टूबर, 1950 में मदर टेरेसा ( Mother Teresa ) ने कोलकाता में किया था, जो एक रोमन कैथोलिक धार्मिक संस्थान है। यह संस्थान गरीब, अनाथ और बीमार लोगों की सेवा करने के लिए बनाई गयी थी।

यह एक धर्मनिरपेक्ष संस्थान है जो सभी धर्मों, जातियों और लिंगों के लोगों की सेवा करती है। यह संस्थान काफी सारी सेवाएं प्रदान करती हैं, जैसे- अनाथालय, वृद्धाश्रम, चिकित्सा सहायता, शिक्षा, गरीबों को भोजन और कपड़े प्रदान करना, बीमार लोगों की देखभाल आदि।

मदर टेरेसा के कार्य

मदर टेरेसा एक बहुत महान आत्मा थी, जिन्होने अपनी सेवाओं से पूरी दुनिया को बेहतर बनाने का प्रयास किया। उन्होने कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जिससे उन्होने पूरी दुनिया में अनेक स्कूल, हॉस्पीटल और अनाथालय बनाए। इस संस्था ने बहुत सारे गरीब, असहाय और अस्वस्थ लोगों की मदद की, जिसकी वजह से टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न मिला।

मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन गरीब और असहाय लोगों की मदद करने के लिए समर्पित कर दिया। उन्होने पूरी जिंदगी मानवता की सेवा की, और सभी धर्मों, जातियों और लिंगों के लोगों की मदद की। इसके अलावा टेरेसा ने दुनिया भर में यात्रा करके शांति और प्रेम का प्रचार भी किया।

मदर टेरेसा के सम्मान और पुरस्कार

मदर टेरेसा ने मानवता के लिए काफी सारे महान कार्य किए है जिसकी वजह से उन्हे अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार दिए गए हैं। सन् 1962 में भारत सरकार ने मदर टेरेसा को समाजसेवा और जनकल्याण के लिए ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया था।

सन् 1980 में, मदर टेरेसा को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा विश्वभर में फैले उनके मिशनरी कार्यों की वजह से उन्हे नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावा भी मदर टेरेसा को काफी सारे सम्मान और पुरस्कार दिए गए है, क्योंकि टेरेसा की सेवाएं दुनिया भर में सरहानिय योग्य हैं।

मदर टेरेसा का निधन

1983 में, मदर टेरेसा को पहली बार दिल का दौरा आया था, उस समय टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने गयी थी। इसके बाद टेरेसा को 1989 में दूसरा दिल का दौरा पड़ा था, और फिर बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगा। उन्होने अपनी मौत से पहले ही 13 मार्च 1997 को मिशनरीज ऑफ चैरिटी के मुखिया पद को छोड़ दिया था। इसके बाद 5 सितंबर 1997 को उनका निधन हो गया।

मदर टेरेसा के बारे में 10 लाइन

  • मदर टेरेसा एक महान महिला थी जिसने अपना पूरा जीवन मनवता की भलाई के लिए समर्पित कर दिया।
  • मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मैसेडोनिया के स्कॉप्जे शहर में एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ।
  • मदर टेरेसा का पूरा और असली नाम “अगनेस गोंझा बोयाजिजू” है।
  • उनके पिता का नाम ‘निकोला बोयाजू’ और माता का नाम ‘द्राना बोयाजू’ था।
  • उन्होने 1928 में आयरलैंड के लोरेटो कान्वेंट में नन बनने के लिए एडमिशन लिया।
  • इसके बाद 1929 में टेरेसा को भारत भेजा गया, जहां उन्होने 1948 में ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की।
  • मिशनरीज संस्था ने दुनिया भर में गरीब, असहाय और अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए कई आश्रम और अस्पताल बनाए।
  • मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया।
  • मदर टेरेसा की मृत्यु दिल के दौरे की वजह से 5 सितंबर, 1997 को हुई थी।
  • पोप फ्रांसिस ने 9 सितंबर 2016 को वेटिकन सिटी में मदर टेरेसा को “संत” की उपाधि दी।

उपसंहार

मदर टेरेसा एक महान महिला थी जिनका जीवन पूरी तरह से गरीब, असहाय और अस्वस्थ लोगों की सेवा के लिए समर्पित था। मदर टेरेसा सभी के लिए एक प्रेरणा स्रोत है कि सभी लोगों को मानवता की खातिर एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। उनका जीवन और कार्य हमें सिखाता है कि हमें लोगों की सहायता करनी चाहिए। हमें उन लोगों के लिए खड़ा होना चाहिए जो न्याय और समानता के लिए हकदार है।

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Mother Teresa Essay in Hindi – मदर टेरेसा पर निबंध

Mother Teresa Essay in Hindi, मदर टेरेसा पर निबंध, Essay on Mother Teresa in Hindi, छात्रों और बच्चों के लिए मदर टेरेसा पर निबंध: दुनिया के इतिहास में कई मानवतावादी हैं। अचानक से मदर टेरेसा लोगों की उस भीड़ में खड़ी हो गईं।

मदर टेरेसा का जीवन परिचय – Life introduction of Mother Teresa

‘मदर टेरेसा’ का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. में अल्बानिया के स्कोप्य नगर में हुआ था। मदर टेरेसा का बचपन का नाम एगनेस गोजा बोजारिया था, लेकिन 1928 ई.में ‘लोरेटो आर्डर’ में जब इनकी शिक्षा शुरू हुई, तो वहाँ इनका नाम बदलकर ‘सिस्टर टेरेसा’ कर दिया गया।

बचपन से ही ये उदार, कोमल, दयालु और शान्त स्वभाव की थी। अध्ययन-काल में ही इनकी अध्यापिका ने भविष्यवाणी कर दी थी कि यह आगे चलकर संत, बनेगी और यह बात अक्षरसः सत्य साबित हुई।

मदर टेरेसा 1928 ई. में एक अध्यापिका के रूप में भारत आई और कोलकाता के सेंट मेरी हाई स्कूल में बच्चो को इतिहास एवं भूगोल का ज्ञान देने लगी।

जैसे ही उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा, सेवा करने के लिए उनके हृदय में जो दीप प्रज्ज्वलित हुआ, उस प्रकाश में उन्होंने निःस्वार्थ भाव से बीमार-गरीबों का सहारा बनकर उनके हृदय में विशेष स्थान बना लिया और इसी से उनकी सेवाएं शुरू हो गईं। वो जमाना, जिसने उन्हें दुनिया के करोड़ों करोड़ों की मां कहलाने का सौभाग्य दिया।

उन्हें गरीबों, अनाथों और शोषितों से इतना प्यार था कि उनकी निस्वार्थ सेवा को ‘मां’ ने भगवान की सेवा के रूप में बुलाया और स्वीकार किया। इसीलिए ‘माँ’ ने 1937 ई. में ‘नन’ के रूप में रहने का निश्चय किया, जिस पर वे जीवन भर अडिग रहीं।

10 सितंबर 1946 को जब वे दार्जिलिंग जा रही थीं, तो उन्हें एक दिव्य प्रेरणा मिली। 1947 में, माँ ने पढ़ाना छोड़ दिया और कोलकाता की झुग्गी में पहला स्कूल स्थापित किया।

उन्होंने आगे ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की। मदर टेरेसा 1946 से जीवन के सामने शुद्ध और शुद्ध संकल्प रखते हुए पूरे मन से समाज सेवा के नेक कार्य में लगी हुई हैं।

1952 ई. में उन्होंने कोलकाता में ‘निर्मल हृदय गृह’ की स्थापना की। 1957 में, उन्होंने ‘कुष्ठ रोगालय’ की स्थापना की और आगे उन्होंने आसनसोल में एक “शांति गृह” की स्थापना की।

कोलकाता में लगभग 60 केंद्र और दुनिया के विभिन्न हिस्सों में 70 केंद्र खोले गए। इन केंद्रों में ‘मां’ के साथ सेवा का व्रत लेने वाले लगभग 700 संन्यासी कार्यरत थे।

मदर टेरेसा ने सेवा करते हुए कभी भी रंगभेद, जाति, जाति, धर्म और देश की परवाह नहीं की। वह केवल पीड़ितों को दिलासा देने, उनकी पीड़ा में उनकी मदद करने और उनकी सेवा करने की परवाह करता था।

मदर टेरेसा को दिए गए पुरस्कार की जानकारी –

उनके इन दिव्य कार्यों की चर्चा देश-विदेश में फैलती रही। इसके बाद उन पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों की झड़ी लग गई।

उन्हें पहले ‘पोप जॉन 23वां’ पुरस्कार मिला, आगे उन्हें ‘टेम्पलटन फाउंडेशन पुरस्कार’, ‘देशीकोटम पुरस्कार’, ‘पद्म श्री’, कैथोलिक विश्वविद्यालय से ‘डॉक्टरेट डिग्री’ और अंत में ‘नोबेल पुरस्कार’ मिला।

9 सितंबर 1979 को उन्हें ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत की सर्वोच्च उपाधि ‘भारत रत्न’ से भी नवाजा गया था। 5 सितंबर 1997 ई. की रात को उनका निधन हो गया।

पूरी दुनिया को मानवता का अमृत देने वाली प्रेम, करुणा और दया की देवी मदर टेरेसा इस तरह चली गईं, लेकिन इस अनोखी मां को दुनिया हमेशा याद रखेगी।

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Final Thoughts –

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  • Jivan Parichay (जीवन परिचय) /

Mother Teresa Biography in Hindi | मदर टेरेसा की जीवनी

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  • Updated on  
  • अगस्त 21, 2024

Mother Teresa Biography in Hindi

Mother Teresa Biography in Hindi: वर्ष 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा (Mother Teresa) एक रोमन कैथोलिक नन थीं और ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ (Missionaries of Charity) नामक संस्था की संस्थापक थीं, जो दुनियाभर में गरीबों लोगों की सेवा करती है। बता दें कि मदर टेरेसा लगभग सात दशकों तक भारत में रही थीं और उन्होंने कोलकाता (तब कलकत्ता) में रहकर सबसे गरीब और बीमार समुदायों की सेवा की थीं। समाज में अपने अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1962 में ‘ रेमन मैग्सेसे शांति पुरस्कार’ से नवाजा गया था। इस वर्ष मदर टेरेसा की 26 अगस्त 2024 को 114वीं जयंती मनाई जाएगी। 

आइए अब मदर टेरेसा की जीवनी (Mother Teresa Biography in Hindi) और उनके कार्यों के बारे में विस्तार से जानते हैं।   

This Blog Includes:

मदर टेरेसा का शुरुआती जीवन – mother teresa story in hindi, मदर टेरेसा के बारे में हिंदी में, मदर टेरेसा के कार्य, मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की शुरुआत, मदर टेरेसा की वैश्विक प्रसिद्धि और पुरस्कार, मदर टेरेसा की मृत्यु, मदर टेरेसा के अनमोल विचार, क्या आप मदर टेरेसा के बारे में ये तथ्य जानते हैं, पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय .

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मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 में मैसेडोनिया गणराज्य की राजधानी स्कोप्जे में हुआ था। इनका नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था। उन्होंने अपने प्रारंभिक जीवन का बड़ा हिस्सा चर्च में बिताया। लेकिन शुरुआत में उन्होंने नन बनने के बारे में नहीं सोचा था। डबलिन में अपना काम ख़त्म करने के बाद मदर टेरेसा भारत के कोलकाता (कलकत्ता) आ गईं। उन्हें टेरेसा का नया नाम मिला। उनकी मातृ प्रवृत्ति के कारण उनका प्रिय नाम मदर टेरेसा पड़ा, जिससे पूरी दुनिया उन्हें जानती है। जब वह कोलकाता में थीं, तब वह एक स्कूल में शिक्षिका हुआ करती थीं। यहीं से उनके जीवन में जोरदार बदलाव आए और अंततः उन्हें “हमारे समय की संत” की उपाधि से सम्मानित किया गया।

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Mother Teresa Biography in Hindi में मदर टेरेसा के बारे में इस प्रकार बताया गया हैः

  • मदर टेरेसा सुरीली आवाज की धनी थीं और वह चर्च में अपनी मां और बहन के साथ गाया करती थीं।
  • 12 साल की उम्र में वह अपने चर्च के साथ एक धार्मिक यात्रा में गई थी, जिसके बाद उनका मन बदल गया।
  • 1928 में 18 साल के होने पर अगनेस ने बपतिस्मा लिया और क्राइस्ट को अपना लिया। इसके बाद वे डबलिन में जाकर रहने लगी, इसके बाद वे वापस कभी अपने घर नहीं गईं।
  • नन बनने के बाद उनका नया जन्म हुआ और उन्हें सिस्टर मेरी टेरेसा नाम मिला।
  • जब वह केवल 9 वर्ष की थीं, तब उनके पिता निकोला बोजाक्सीहु की मृत्यु हो गई थी। निकोला की मौत के बाद उसके बिजनेस पार्टनर सारा पैसा लेकर भाग गए। उस समय विश्व युद्ध भी चल रहा था, इन सभी कारणों से उनका परिवार भी आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। वह उनके और उनके परिवार के लिए सबसे दुखद समय था।

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1929 में मदर टेरेसा अपने इंस्टीट्यूट की बाकी नन के साथ मिशनरी के काम से भारत के दार्जिलिंग शहर आईं। यहां उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजा गया था। मई 1931 में उन्होंने नन के रूप में प्रतिज्ञा ली। इसके बाद उन्हें भारत के कलकत्ता शहर के ‘लोरेटो कॉन्वेंट आ गईं’। यहां उन्हें गरीब बंगाली लड़कियों को शिक्षा देने के लिए कहा गया। डबलिन की सिस्टर लोरेटो द्वारा सैंट मैरी स्कूल की स्थापना की गई, जहां गरीब बच्चे पढ़ते थे। मदर टेरेसा को बंगाली व हिंदी दोनों भाषा का बहुत अच्छे से ज्ञान था।

कलकत्ता में उन्होंने वहां की गरीबी, लोगों में फैलती बीमारी, लाचारी व अज्ञानता को करीब से देखा। ये सब बातें उनके मन में घर करने लगी और वे कुछ ऐसा करना चाहती थीं। 1937 में उन्हें मदर की उपाधि से सम्मानित किया गया और 1944 में वे सैंट मैरी स्कूल की प्रिंसीपल भी बन गईं।

वह एक अनुशासित शिक्षिका थीं और स्टूडेंट्स उनसे बहुत स्नेह करते थे। वर्ष 1944 में वह हेडमिस्ट्रेस बन गईं। उनका मन शिक्षण में पूरी तरह रम गया था पर उनके आस-पास फैली गरीबी, दरिद्रता और लाचारी उनके मन को बहुत अशांत करती थी।

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‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’ की शुरुआत 13 लोगों के साथ हुई थी। 1946 में उन्होंने गरीबों, असहायों, बीमारों और लाचारों की मदद करने का मन बना लिया। इसके बाद मदर टेरेसा ने पटना के होली फॅमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और वहां से पहली बार तालतला गई, जहां वह गरीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रहीं।

धीरे-धीरे उन्होंने अपने कार्य से लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इन लोगों में देश के उच्च अधिकारी और भारत के प्रधानमंत्री भी शामिल थे, जिन्होंने उनके कार्यों की सराहना की। 7 अक्टूबर 1950 को उन्हें वैटिकन सिटी से ‘मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी’ की स्थापना की अनुमति मिली। इस संस्था का उद्देश्य भूखों, निर्वस्त्र, बेघर, दिव्यांगों, चर्म रोग से ग्रसित और ऐसे लोगों की सहायता करना था जिनके लिए समाज में कोई जगह नहीं थी। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम भी खोले।

जब वह भारत आईं तो उन्होंने यहां बेसहारा और विकलांग बच्चों और सड़क के किनारे पड़े असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आंखों से देखा। इसके बाद उन्होंने जनसेवा का जो व्रत लिया, उसका पालन लगातार करती रहीं।

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मदर टेरेसा के काम को दुनिया भर में मान्यता और सराहना मिली है। Mother Teresa Biography in Hindi में हम जानेंगे कि उन्हें विश्व स्तर पर कौन-कौन से अवार्ड दिए गएः

  • 1962 में भारत सरकार से पद्मश्री
  • 1980 में भारत रत्न (देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान)
  • 1985 में अमेरिका का मेडल आफ़ फ्रीडम 
  • 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार (मानव कल्याण के लिए किये गए कार्यों के लिए) 
  • मदर तेरस ने नोबेल पुरस्कार की 192,000 डॉलर की धन-राशि को गरीबों के लिए एक फंड के तौर पर इस्तेमाल करने का निर्णय लिया।
  • 2003 में पॉप जॉन पोल ने मदर टेरेसा को धन्य कहा, उन्हें ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता कहकर सम्मानित किया गया था।

वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में मदर टेरेसा को पहली बार दिल का दौरा पड़ा। उस समय मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। दूसरा दिल का दौरा उन्हें 1989 में आया और उन्हें पेसमेकर लगाया गया। 1991 में मैक्सिको में न्यूमोनिया के बाद उनके ह्रदय की परेशानी और बढ़ गयी। इसके बाद उनकी सेहत लगातार गिरती रही। 5 सितंबर 1997 को उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में कार्यरत थीं।

यह भी पढ़ें: भारत के बैडमिंटन विश्व चैंपियन पीवी सिंधु की प्रेणादायक कहानी

Mother Teresa Biography in Hindi में मदर टेरेसा के अनमोल विचार नीचे बताए जा रहे हैं, जो आपका लोगों के प्रति नजरिया बदल सकते हैंः  

“मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित रहें। क्या आप अपने पड़ोसी को जानते हैं?”

“यदि हमारे बीच शांति की कमी है तो वह इसलिए क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक दूसरे से संबंधित हैं।”

“यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो कम से कम एक को ही करवाएं।”

Mother Teresa Biography in Hindi

“यदि आप प्रेम संदेश सुनना चाहते हैं तो पहले उसे खुद भेजें। जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।”

“अकेलापन सबसे भयानक ग़रीबी है।”

“अपने क़रीबी लोगों की देखभाल कर आप प्रेम की अनुभूति कर सकते हैं।”

Mother Teresa Biography in Hindi

“अकेलापन और अवांछित रहने की भावना सबसे भयानक ग़रीबी है।”

“अनुशासन लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का पुल है।”

“सादगी से जियें ताकि दूसरे भी जी सकें।”

“प्रत्येक वस्तु जो नहीं दी गयी है खोने के सामान है।”

“हम सभी महान कार्य नहीं कर सकते लेकिन हम कार्यों को प्रेम से कर सकते हैं।”

“हम सभी ईश्वर के हाथ में एक कलम के सामान है।”

मदर टेरेसा के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैंः

  • मदर टेरेसा कहा करती थीं कि 12 साल की उम्र से ही उन्हें रोमन कैथोलिक नन बनने का आकर्षण महसूस होने लगा था। एक बच्ची के रूप में भी, उन्हें मिशनरियों की कहानियाँ पसंद थीं।
  • उनका असली नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीहु था। हालाँकि, आयरलैंड में इंस्टीट्यूट ऑफ द ब्लेस्ड वर्जिन मैरी में समय बिताने के बाद उन्होंने मदर टेरेसा नाम चुना।
  • मदर टेरेसा अंग्रेजी, हिंदी, बंगाली, अल्बानियाई और सर्बियाई समेत पांच भाषाएं जानती थीं। यही कारण है कि वह दुनिया के विभिन्न हिस्सों के कई लोगों के साथ संवाद करने में सक्षम थी।
  • मदर टेरेसा को दान और गरीबों के प्रति उनकी मानवीय सेवाओं के लिए 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। हालांकि, उन्होंने पूरा पैसा कोलकाता के गरीबों और दान में दान कर दिया।
  • धर्मार्थ कार्य शुरू करने से पहले वह कोलकाता के लोरेटो-कॉन्वेंट स्कूल में हेडमिस्ट्रेस थीं, जहां उन्होंने लगभग 20 वर्षों तक एक शिक्षिका के रूप में काम किया और स्कूल छोड़ दिया क्योंकि वह स्कूल के आसपास की गरीबी के बारे में अधिक चिंतित हो गईं।
  • मदर टेरेसा ने अपना अधिकांश समय भारत में गरीबों और अस्वस्थ लोगों के कल्याण के लिए बिताया।
  • कोलकाता में स्ट्रीट स्कूल और अनाथालय भी शुरू किए।
  • मदर टेरेसा ने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के नाम से अपनी संस्था शुरू की। संगठन आज भी गरीबों और बीमारों की देखभाल करते हैं। साथ ही, दुनिया के विभिन्न हिस्सों में संगठन की कई शाखाएँ हैं।
  • मदर टेरेसा ने वेटिकन और संयुक्त राष्ट्र में भाषण दिया जो एक ऐसा अवसर है जो केवल कुछ चुनिंदा प्रभावशाली लोगों को ही मिलता है।
  • मदर टेरेसा का भारत में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया, जिसे सम्मान स्वरूप सरकार द्वारा केवल कुछ महत्वपूर्ण लोगों को ही दिया जाता है।
  • 2015 में उन्हें रोमन कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस द्वारा संत बनाया गया था। इसे कैनोनेज़ेशन के रूप में भी जाना जाता है और अब उन्हें कैथोलिक चर्च में कलकत्ता की सेंट टेरेसा के रूप में जाना जाता है।

यहाँ नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित मदर टेरेसा की जीवनी (Mother Teresa Biography in Hindi) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-

मदर टेरेसा वर्ष 1929 में भारत आयी थीं।

वर्ष 1979 में मदर टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

मदर टेरेसा मिशनरीज ऑफ चैरिटी (Missionaries of Charity) की संस्थापक थीं।

उनका पूरा नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सिउ था।

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को उत्तरी मैसेडोनिया के स्कोप्जे में हुआ था। 

आशा है कि आपको मदर टेरेसा की जीवनी (Mother Teresa Biography in Hindi) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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देवांग मैत्रेय

स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 7 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर/एडिटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।

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मदर टेरेसा पर निबंध-Mother Teresa Essay In Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध (mother teresa essay in hindi) :.

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भूमिका : मदर टेरेसा को उन महान लोगों में गिना जाता है जिन्होंने अपने जीवन को दूसरों के लिए समर्पित कर दिया था। मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और भलाई करने में लगा दिया था। हमारी दुनिया को ऐसे ही महान लोगों की जरूरत है जो मानवता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म समझते हैं। मदर टेरेसा भारतीय नहीं थीं फिर भी उन्होंने हमारे भारत देश को बहुत कुछ दिया था। आज जब वे हमारे बीच इस दुनिया में नहीं हैं फिर भी पूरी दुनिया में उनके काम को एक मिसाल की तरह जाना जाता है। मदर टेरेसा मानवता की एक जीती-जागती मिसाल थीं।

मदर टेरेसा का नाम लेते ही मन में माँ की भावनाएं उमड़ने लगती हैं। मदर टेरेसा मानवता के लिए काम करती थीं। वे दीन-दुखियों की सेवा करती थीं। मदर टेरेसा को दया की देवी, दीन हीनों की माँ और मानवता की मूर्ति कहा जाता था। इनके माध्यम से ईश्वरीय प्रकाश को देखा जा सकता था। मदर टेरेसा जी ने अपने जीवन को तिरस्कृत, असहाय, पीड़ित, निर्धन, कमजोर लोगों की सेवा करने में लगा दिया था। मदर टेरेसा जी ने अपाहिजों, अंधों, लूले-लंगडो तथा दीन-हीनों की सेवा को अपना धर्म बना लिया था।

जन्म : मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मेसिड़ोनियो की राजधानी स्कोप्जे शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम Dranafile Bojaxhiu था और पिता का नाम Nikollë Bojaxhiu था। मदर टेरेसा का जन्म एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा जी के पिता धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे। मदर टेरेसा का नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू था।

अल्बेनियन में गोंझा का अर्थ था फूलों की कली। मदर टेरेसा एक ऐसी कली थीं जिन्होंने दीन-दुखियों की जिंदगी में प्यार की खुशबु को भरा था। मदर टेरेसा के पांच भाई-बहन थे जो सभी उनसे बड़े थे। जब वे 9 साल की थीं तब उनके पिता जी का देहांत हो गया था।

प्रारंभिक जीवन : मदर टेरेसा एक सुंदर, परिश्रमी एवं अध्ध्यनशील लडकी थीं। टेरेसा को पढना, गीत गाना बहुत पसंद था। मदर टेरेसा को यह अनुभव हो गया था कि वे अपना सारा जीवन मानव सेवा में बिता देंगी। उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी की साडी पहनने का फैसला किया और तभी से वे मानवता की सेवा का काम करने लगीं थीं।

12 साल की उम्र में उन्होंने नन बनने का फैसला किया 18 साल की उम्र में कलकत्ता में आइरेश नौरेटो नन मिशनरी में शामिल होने का फैसला लिया। प्रतिज्ञा लेने के बाद वे सेंट मैरी हाईस्कूल कलकत्ता में अध्यापिका बन गईं थीं। मदर टेरेसा जी बीस साल तक अध्यापक पद पर कार्य करती रहीं और फिर प्रधान अध्यापक पद पर भी बहुत ईमानदारी से कार्य किया।

लेकिन उनका मन कहीं और ही था। झोंपड़ी में रहने वाले लोगों की पीड़ा और दर्द ने टेरेसा जी को बैचैन सा कर दिया था। मदर टेरेसा एक त्याग की मूर्ति थीं। वे जिस घर में रहती थीं वहां पर नंगे पैर चलती थीं। वे एक छोटे से कमरे में रहती थीं तथा अपने अतिथियों से मिला करती थीं।

उस कमरे में सिर्फ एक मेज और एक कुर्सी होती थी। मदर टेरेसा जी हर व्यक्ति से मिला करती थीं और सभी से प्रेम भाव से वार्तालाप किया करती थीं तथा सभी की बातों को सुनती थीं। मदर टेरेसा के तौर तरीके बहुत ही विनम्र होते थे। उनकी आवाज में सज्जनता और विनम्रता साफ झलकती थी।

मदर टेरेसा जी की मुस्कान उनकी ह्रदय की गहराई से निकलती थी। सभी काम समाप्त हो जाने के बाद वे पत्र पढ़ा करती थीं जो उनके पास आया करते थे। वे विश्वास रखती थीं कि सारी बुराईयाँ घर से पैदा होती हैं। वे शांति और प्रेम की दूत थीं। अगर घर में प्रेम होता है तो यह स्वाभाविक है कि सभी लोगों में शांति बने।

भारत आगमन : मदर टेरेसा आयरलैंड से 6 जनवरी, 1929 को कलकत्ता में लोरेटो कान्वेंट पहुंची थीं। इसके बाद उन्होंने पटना से होली फैमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और सन् 1948 को वापस कलकत्ता आईं थीं। सन् 1948 में उन्होंने वहाँ के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला जिसके बाद उन्होंने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी।

मदर टेरेसा जी ने सन् 1952 में कलकत्ता में निर्मल ह्रदय और निर्मला शिशु भवन के नाम से भी आश्रम खोले। निर्मल ह्रदय आश्रम का काम बीमारी से पीड़ित रोगियों की सेवा करना था। निर्मला शिशु भवन आश्रम की स्थापना अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए की गयी थी जहाँ पर वे पीड़ित रोगियों व गरीबों की खुद सेवा करती थीं।

मदर टेरेसा जी ने भारत में सबसे पहले दार्जिलिंग में सेवा करना शुरू किया था। सन् 1929 से लेकर 1948 तक वे निरक्षकों को पढ़ाने का काम करती रहीं थीं। वे बच्चों को पढ़ाने में अधिक रूचि लेती थीं और बच्चों से प्रेम करती थीं। सन् 1931 में उन्होंने अपना नाम बदलकर टेरेसा रखा था। सन् 1946 में ईश्वरीय प्रेरणा से उन्होंने मानव के कष्टों को दूर करने की प्रतिज्ञा ली थी।

सेवा कार्य : शुरू में मदर टेरेसा मरणासन्न गरीबों की खोज में शहर भर में घूमती थीं तब उनके पास सिर्फ डेढ़ रुपए होते थे। पहले तो ये क्रिकलेन में रहती थीं लेकिन बाद में वे सर्कुलर रोड पर रहने लगीं थीं। इस समय में यह इमारत मदर हॉउस के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।

मदर टेरेसा जी ने एक संगठन की शुरुआत की थी जिसमें अपने बहनों और भाईयों के सहयोग से गरीबों की भलाई के लिए नि:शुल्क किया था। यह संगठन आज के समय में एक विश्व व्यापी संगठन बन चुका है। 10 सितंबर, 1946 को अपनी आत्मा की आवाज सुनने के बाद उन्होंने अपने प्रधान अध्यापक पद को छोडकर बहुत गरीब लोगों के लिए सेवा कार्य करने का निश्चय किया।

मदर टेरेसा जी ने पटना के अंदर नर्सिंग का प्रशिक्षण लिया और कलकत्ता की गलियों में घूम-घूम कर दया और प्रेम का मिशन प्रारंभ किया था। मदर टेरेसा जी कमजोर त्यागे हुए और मरते हुए लोगों को सहारा देती थीं। टेरेसा जी ने कलकत्ता निगम से एक जमीन का टुकड़ा माँगा और उस पर एक धर्मशाला को स्थापित किया। उन्होंने इस छोटी सी शुरुआत के बाद 98 स्कूटर, 425 मोबाईल डिस्पेंसरीज, 102 कुष्ठ रोगी दवाखाना, 48 अनाथालय और 62 ऐसे घर बनाये थे जिसमें दरिद्र लोग रह सकें।

मिशनरीज ऑफ चैरिटी : मदर टेरेसा जी ने एक मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी जिसे रोमन कैथोलिक चर्च ने 7 अक्टूबर, 1950 को मान्यता दी थी। मदर टेरेसा जी की मशीनरीज संस्था ने सन् 1996 तक लगभग 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले थे। इनसे लगभग 5 लाख लोगों की भूख मिटाई जाने लगी थी।

मदर टेरेसा जी सुबह से लेकर शाम तक अपनी मशीनरी बहनों के साथ व्यस्त रहा करती थीं। मदर टेरेसा जी ने 13 मार्च, 1997 को मशीनरीज ऑफ चैरिटी का मुखिया पद छोड़ दिया था जिसके कुछ महीनों बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। मदर टेरेसा जी की मृत्यु के समय तक मशीनरीज ऑफ चैरिटी में 4000 सिस्टर और 300 और संस्थाएं काम कर रही थीं। जो संसार के 123 देशों में समाजसेवा का काम करती थीं।

सम्मान और पुरस्कार : मदर टेरेसा जी को सन् 1931 को 23वां पुरस्कार मिला था। उन्हें शांति पुरस्कार और टेम्पलेटन फाउंडेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मदर टेरेसा जी को उनकी सेवाओं के लिए सेविकोत्तम की पदवी से भी सम्मानित किया गया था।

मदर टेरेसा जी को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। मदर टेरेसा जी को सन् 1962 में उनकी समाजसेवा और जनकल्याण की भावना के आधार पर उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। नोबल प्राइज फाउंडेशन ने सन् 1979 में मदर टेरेसा को संसार के सर्वोच्च पुरस्कार नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया था।

यह पुरस्कार उन्हें शांति के लिए उनकी प्रवीणता के लिए दिया गया था। मदर टेरेसा को सन् 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया था। मदर टेरेसा जी को सभी पुरस्कारों से जो भी राशी प्राप्त हुई थी उसे उन्होंने मानव के कार्यों में लगा दिया था।

मृत्यु : मदर टेरेसा जी को सन् 1983 में सबसे पहली बार दिल का दौरा पड़ा था। उस समय मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई थीं। इसके बाद सन् 1989 में उन्हें दूसरा दिल का दौरा पड़ा था। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढती जा रही थी उसी तरह से उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ता जा रहा था। मदर टेरेसा जी की मृत्यु 5 सितंबर, 1997 को कलकत्ता में तीसरे दिल के दौरे की वजह से हुई थी।

उपसंहार : जिस तरह से मदर टेरेसा जी ने दीन-दुखियों की सेवा की थी उसे देखते हुए पॉप जॉन पॉल द्वितीय ने 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में मदर टेरेसा जी को धन्य घोषित कर दिया था। मदर टेरेसा जी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी मशीनरी आज भी समाजसेवा के कामों में लगी हुई है।

मदर टेरेसा का संदेश था कि हमें एक-दूसरे से इस तरह प्रेम करना चाहिए जिस तरह से भगवान हम सबसे करता है। तभी हम अपने विश्वास में, देश में, घर में और अपने ह्रदय में शांति को ला सकते हैं। जनता ने उनका दिल खोलकर सम्मान किया। इतना सब होने के बाद भी उनमे घमंड का लेष भी नहीं था।

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Essay on mother teresa in hindi मदर टेरेसा पर निबंध.

Hello, guys today we are going to discuss essay on Mother Teresa in Hindi. मदर टेरेसा पर निबंध। कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के बच्चों और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए मदर टेरेसा पर निबंध हिंदी में। Read an essay on Mother Teresa in Hindi to get better results in your exams.

Essay on Mother Teresa in Hindi – ममतामयी मदर टेरेसा पर निबंध

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Essay on Mother Teresa in Hindi 200 Words मदर टेरेसा पर निबंध

मदर टेरेसा एक महान महिला थी जिन्होने अपनी सारी जिन्दगी गरीबों ओर जरूरतमंद लोगों की सेवा करने में लगायी। उनका जन्म मेसेडोनिया में 26 अगस्त 1910 को हुआ था। मदर टेरेसा भगवान में विश्वास रखने वाली महिला थी। उन्होने अपने जीवन का अधिकतम समय चर्च में बिताया था। कुछ समय बाद वह चर्च की नन बन गयी। जब मदर टेरेसा कोलकत्ता आयी तब उनकी उम्र 18 वर्ष थी। उन्होंने गरीब व जरूरतमंदो की मदद करने का मिशन यहाँ पर भी जारी रखा। उन्होने कुष्ठ रोगो से पीड़ित गरीबो की सेवा की और उन्हें यह भी बताया कि कुष्ठ रोग कोई संक्रामक रोग नहीं है और यह एक दूसरे को छूने से नही फैलता।

मानव जाति की सेवा के लिये सन् 2016 में उन्हे ‘संत’ की उपाधि दी गयी थी। मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन दूसरों की भलाई के लिये बिताया था। उनका भरोसा भगवान पर बहुत था। वह कई घंटो तक भगवान की प्रार्थना करती थी। उनका मानना था कि प्रार्थना ही उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है उन्होने 15 वर्षों तक इतिहास और भूगोल पढाया। उनका सारा जीवन मानव सेवा में ही बीता।

Essay on Motherland in Hindi

Letter to Grandmother in Hindi

Essay on Mother Teresa in Hindi 500 Words

वे दूसरों के दुःख-तकलीफ को अपना समझती थीं। किसी को कोई दर्द या पीड़ा होती, तो उनकी आँखों में आँसू छलक आते थे। ऐसी थीं, पूरी दुनिया की माँ, मदर टेरेसा। वे 20वीं सदी की वो शख्सियत थीं, जिन्होंने देश-धर्म की सीमाओं से आजाद रहते हुए अपनी पूरी जिंदगी मानवता की सेवा में लगा दी। वे सही मायने में विश्व – नागरिक थीं। यह हमारा सौभाग्य है कि उन्होंने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया।

मदर टेरेसा का जन्म मकदूनिया के स्कोपजे में 26 अगस्त, 1910 को हुआ था। जब वे महज़ आठ साल की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। वे बचपन से ही बहुत संवेदनशील थीं। 12 वर्ष की खेलने-कूदने की उम्र में ही उन्होंने नन बनने का फैसला कर लिया। 18 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने इस फैसले को अमल में लाने के लिए पहला कदम बढ़ाया और सिस्टर्स ऑफ लारेट नामक संस्था में शामिल हो गईं।

6 जनवरी, 1929 को मदर टेरेसा पहली बार भारत आईं और फिर यहीं की होकर रह गईं। 1931 से 1948 तक उन्होंने कोलकाता के सेंट मेरी हाई स्कूल में शिक्षिका के रूप में कार्य किया। कोलकाता में रहते हुए उन्होंने गरीबी, बीमारी और पीड़ा को बहुत पास से देखा। उन्होंने अध्यापन का कार्य तो अपना लिया था, लेकिन वे शहर की गंदी बस्तियों में रहने वाले लोगों की हालत के बारे में ही सोचती रहती थीं। उन्होंने 1948 में पटना में एक कम अवधि वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया। इसके बाद वे कोलकाता लौटकर लोगों की सेवा में जुट गईं। सेवा का यह मिशन आगे बढ़ाते हुए उन्होंने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की शुरुआत की। आज यह संस्था दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बेसहारा और बीमार लोगों तथा अनाथ बच्चों की देखभाल कर रही है।

मदर टेरेसा ने झुग्गी-झोंपड़ियों में जाकर कुष्ठ, तपेदिक, एड्स जैसी भयंकर बीमारियों से ग्रस्त लोगों की जैसी सेवा की, वैसी शायद ही कोई कर सकता था। उनके इसी सेवाभाव के कारण रोमन कैथोलिक पंथ ने उन्हें संत की पदवी दी है। मदर टेरेसा को बहुत-से राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और धार्मिक पुरस्कारों से नवाजा गया। उनकी सेवाओं को देखते हुए 1979 में उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। 1980 में वे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारतरत्न’ से भी सम्मानित की गईं। पोप जॉन पॉल द्वितीय ने 2003 में मदर टेरेसा को ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ कोलकाता की उपाधि प्रदान की। 5 सितंबर, 1997 को मदर टेरेसा अपने न जाने कितने ही बच्चों को अनाथ कर दुनिया से विदा हो गईं।

Essay on Mother in Hindi

Essay on grandmother in Hindi

Essay on Mother Teresa in Hindi 1000 Words

शांति की दूत, गरीबों का मसीहा, निराश्रितों, रुग्ण, मरणासन्न व अनाथों की सच्ची माँ टेरेसा का जन्म अल्बानिया (यूगोस्लाविया) में 29 अगस्त, 1910 को हुआ था। उनके पिता एक साधारण व्यक्ति थे और माता धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। प्रारम्भ से ही उन्हें सेवा कार्यों और रोमन कैथोलिक ईसाई धर्म में बड़ी रुचि थी। 18 वर्ष की आयु में वे एक नन (भिक्षुणी) बन कर आयरलैंड चली गईं। कुछ समय उपरांत वे भारत में सेवाकार्य के लिए चली आईं और कलकत्ता के सेंट मेरी स्कूल में अध्यापन करने लगीं। बाद में वे इसकी प्रधानअध्यापिका बन गईं।

ईश्वरीय प्रेरणा और संदेश ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया। 1937 में वे जब एक दिन दार्जिलिंग जा रही थीं तभी उन्हें ईश्वरीय संदेश की अनुभूति हुई और वे निर्धन, अपाहिजों, निराश्रितों, मरणासन्न व्यक्तियों की सेवा में लग गईं। लावारिस मृत व्यक्तियों को सम्मानजनक अंतिम संस्कार देने का भी उन्होंने बीड़ा उठाया। कुष्ठ पीड़ित लोगों की सेवा को भी उन्होंने अपना धर्म समझा। 10 सितम्बर आज भी प्रतिवर्ष “प्रेरणा दिवस” के रूप में मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन मदर को ईश्वरीय प्रेरणा और संदेश प्राप्त हुए थे। 1948 में वे भारत की नागरिक बन गईं।

कलकत्ता की गंदी बस्तियों, झुग्गी-झोंपड़ियों आदि को उन्होंने अपने कार्यक्षेत्र के रूप में अपनाया। अनाथ बच्चों, बेघर व्यक्तियों, बीमार लोगों, अपाहिजों तथा कुष्ठपीड़ित लोगों की सेवा ने लोगों और उनके बीच प्रेम, सेवा और स्नेह का एक अटूट रिश्ता बना दिया। यह रिश्ता आगे आने वाले लगभग 50 वर्षों तक बना रहा। धीरे-धीरे उनकी ख्याति सारे कलकत्ता नगर में फैल गई और वे ‘माँ’ (मदर) नाम से प्रसिद्ध हो गईं। कलकत्ता के असंख्या गरीब, बेसहारा, रुग्ण, स्त्री-पुरूष, उनके पुत्र-पुत्रियां और संतान बन गये। माँ के विभिन्न सद्गुणों-ममता, स्नेह, करुणा, त्याग, तपस्या और सेवाभाव से भरपूर वे ईश्वर की साक्षात प्रतिनिधि बन गईं। सन् 1948 में रोम के सबसे बड़े रोमन कैथोलिक धर्मगुरू पोप ने उनको इस पवित्र कार्य की स्वीकृति दे दी थी।

सन् 1950 में मदर ने कुछ अन्य भिक्षुणियों की सहायता से भीड़भाड़ भरे स्थान-जगदीश चन्द्र बोस मार्ग पर ‘‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी” नामक संस्था की स्थापना की। इससे सेवा कार्य में और अधिक तेजी आ गई और यह कार्य अधिक संगठित व सुचारू हो गया। आगे चलकर 1955 में मदर ने कलकत्ता कोरपोरेशन प्रदत्त एक स्थान पर ‘‘निर्मल हृदय” नामक प्रथम संस्था और गृह की स्थापना की। धीरे-धीरे उन्होंने और कई आश्रम और गृह अनाथों निर्धनों व निराश्रितों के लिए खोले और देखते-ही-देखते सेवाश्रमों का एक जाल-सा बिछ गया।

जो व्यक्ति निराश्रित, भूखे-नंगे, बदहाल, रुग्ण, मरणासन्न या कुष्ठ पीड़ित थे उन्हें उन आश्रमों और गृहों में शरण दी जाती थी, उनकी सेवा सुश्रूषा की जाती थी तथा उन्हें माँ का स्नेह प्रदान किया जाता था। इस स्वार्थहीन सेवाभाव व असीमित करुणा ने सारे कलकत्ता वासियों को अभिभूत कर दिया और माँ की ख्याति व यश देश-विदेश में तीव्रता से फैलने लगा। आज सारे विश्व में मदर द्वारा स्थापित 240 से अधिक आश्रम, सेवागृह, अस्पताल, स्कूल, अनाथालय आदि हैं। ऐसे कई आश्रम और आश्रय स्थल अपाहिजों, निराश्रितों, अनाथ बच्चों, महिलाओं, कुष्ठ पीड़ितों आदि के लिए खोले जा रहे हैं। ये सारे संसार में प्यार, सेवा, करुणा और वात्सल्य का संदेश कोने-कोने में पहुंचा रहे हैं तथा हमारे जीवन से भुखमरी, बदहाली, गरीबी, बीमारी आदि दूर करने का सराहनीय प्रयत्न कर रहे हैं।

अकेले भारत में ही 215 से अधिक चिकित्सालयों में आज लगभग 10 लाख रोगियों की चिकित्सा व देखभाल की जा रही है। सेवाश्रमों, वृद्ध गृहों, अनाथालयों आदि की संख्या भी निरन्तर वृद्धि पर है और विशेष बात यह है कि सभी कार्य बिना सरकारी सहायता के चल रहे हैं। निर्मल हृदय” व‘‘फर्स्ट लव” नामक ये सेवाश्रम परहित, सेवा व करुणा के अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। सेवारत भिक्षुणियों की निष्काम कार्य परायणता, निष्ठा, त्याग, तपस्या, लगन और समर्पण भाव देखते ही बनते हैं।

मदर टेरेसा पहली बार 1980 में अमेरिका गईं और वहां उनका भव्य आदर हुआ तथा लोगों ने जी खोलकर उनकी आर्थिक सहायता की। उनके द्वारा सम्पन्न सेवा कार्यों ने उन्हें विश्वविख्यात बना दिया और उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार दिये गये। 1962 में भारत स. कार ने उन्हें पदमश्री की उपाधि से विभूषित किया। 1962 में उन्हें मैगसेसे पुरस्कार फिलिपींस सरकार की ओर से दिया गया। इसमें प्राप्त धन राशि से मदर ने आगरा में एक कुष्ठगृह व आवास का निर्माण करवाया।

1968 में ब्रिटेन की जनता ने अपना प्रेम व आदरभाव प्रदर्शित करते हुए मदर को 19000 पाऊंड दिये। 1970 में वेटिकन पोप ने 1 लाख 30 हजार रुपये की राशि उन्हें भेंट की। यह धन ‘पीस प्राइज’ एक शांति पुरस्कार के रूप में दिया गया था। फिर 1971 में उन्हें कैनेडी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और इसमें उन्हें, 1,00,000 डालर प्राप्त हुए। 1972 में नेहरू अवार्ड तथा टेम्पलटन अवार्ड से उन्हें विभूषित किया गया। इतने सारे पुरस्कार, सम्मान व उपाधियां आज तक किसी विभूति को शायद ही मिले हों। 1979 में उन्हें विश्वप्रसिद्ध नॉबेल शाँति पुरस्कार दिया गया तो 1980 में भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से विभूषित किया। मदर का देहांत 5 सितम्बर, 1997 को कलकत्ता में हृदयगति रुक जाने से हो गया। सारे विश्व में दु:ख की लहर दौड़ गई।

Mothers Day Essay in Hindi

Bal Diwas par Nibandh

Essay on Mother Teresa in Hindi 1200 Words

देश और काल की परिधि को तोड़कर, जात-पांत के बन्धनों से अलग ऊंच और नीच की भावना से रहित दिव्य आत्माएँ विश्व में दरिद्र-नारायण की सेवा कर परमपिता परमात्मा की सच्ची सेवा करते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य साधारण मानवों की भान्ति निजी शरीर और जीवन नहीं होता, यश और धन की कामना उन्हें नहीं होती है अपितु वे विशुद्ध और नि:स्वार्थ हृदय से दीन-दु:खियों, दलित और पीड़ितों की सेवा करते हैं। इस प्रकार की दिव्य-आत्माओं में आज ममतामयी मूर्ति मदर टेरेसा है जिन्हें अपनी अनथक सेवा, मानवता के लिए सेवा और प्यार भरे हृदय के कारण ‘मदर’ कहा जाता है क्योंकि वे उपेक्षितों अनाथों, असहायों के लिए ‘मदर हाउस’ बनवाती हैं और उन्हें आश्रय देती हैं।

मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 ई. को यूगोस्लाविया के स्कोपले नामक स्थान में हुआ था। इनके बचपन का नाम आगनेस गोंवसा बेयायू था। माता-पिता अल्बानियम जाति के थे। इनके पिता एक स्टोर में स्टोर कीपर थे। बारह वर्ष की अल्प अवस्था में जब इन्होने मिशनरियों द्वारा किए गए परोपकार और सेवा के कार्यों के सम्बन्ध में सुना तो उनके बाल-हृदय ने यह कठोर और दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह भी अपने जीवन का मार्ग लोक सेवा ही चुनेंगी। अठारह वर्ष की आयु में वे आईरिश धर्म परिवार लोरेटों में सम्मिलित हुई और इसके साथ ही आरम्भ हुआ उनके जीवन के महान् यज्ञ का आरम्भ जिसमें वे निरन्तर अनथक भाव से सेवा की आहुतियां दे रही हैं। दार्जिलिंग के सुरम्य पर्वतीय वातावरण से वे बहुत प्रभावित हुईं और सन् 1929 ई. में उन्होंने कलकत्ता के सेण्टमेरी हाई स्कूल में शिक्षण कार्य आरम्भ कर दिया। इसी स्कूल में वे कुछ समय बाद प्रधानाचार्य बनीं और स्कूल की सेवा करती रहीं। लेकिन स्कूल की छोटी सी चार दीवारी में उनका हृदय असीमित सेवा की बलवती भावना से व्याकुल रहता। वे अधिक से अधिक लोगों की सेवा के व्यापक क्षेत्र को अपनाना चाहती थी। आजीवन ही स्वयं को मानव की सेवा में समर्पित कर देने की भावना निरन्तर प्रबल और विशेष होती गई। फलस्वरूप, उन्हीं के शब्दों में 10 सितम्बर, सन् 1946 का दिन था जब मैं अपने वार्षिक अवकाश पर दार्जिलिंग जा रही थी – उस समय मेरी अन्तरात्मा से आवाज़ उठी कि मुझे सब कुछ त्याग कर देना चाहिए और अपना जीवन ईश्वर और दरिद्र नारायण की सेवा करके कंगाल तन को समर्पित कर देना चाहिए।

जीवन लक्ष्य

इस सेवा भाव की भावना और अन्तरात्मा की आवाज़ को वे प्रभु यीशु की प्रेरणा और इस दिवस को ‘प्रेरणा दिवस’ मानती हैं। प्रभु-यीशु के इस पावन संदेश को उन्होंने जीवन का लक्ष्य मान लिया और पोप से कलकत्ता महानगर की उपेक्षित गन्दी बस्तियों में रहकर दलितों की सेवा करने का आदेश प्राप्त कर लिया। अब पूर्ण समर्पित दृढ़ प्रतिज्ञ और अविचल रहकर उन्होंने उपेक्षित, तिरस्कृत, दलितों और पीड़ितों की सेवा का कार्य आरम्भ कर लिया। उनकी धारणा है कि मनुष्य का मन ही बीमार होता है। अनचाहा, तिस्कृत एवं उपेक्षित व्यक्ति मन से रोगी हो जाता है और जब वह मन का रोगी हो जाता है तो शारीरिक रूप से कभी भी ठीक नहीं हो पाता। जो दरिद्र है, बीमार है, तिरस्कृत और उपेक्षित है, उन्हें प्रेम और सौहार्द की आवश्यकता है। उनके प्रति प्रेम करना ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम है। उन्होंने एक बार एक सभा में कहा था – लोगों में 20 वर्ष काम करके मैं अधिकधिक यह अनुभव करने लगी हैं कि अनचाहा होना सबसे बुरी बीमारी है जो कोई भी व्यक्ति महसूस कर सकता है।”

उनकी सेवा के परिणामस्वरूप कलकत्ता में एक ‘निर्मल हृदय होम’ स्थापित किया गया और स्लम विद्यालय खोला गया।

कलकत्ता में मोलाली क्षेत्र में जगदीश चन्द्र बसु सड़क पर अब मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का कार्यालय है जो दिन रात चौबीसों घण्टे उन व्यक्तियों की सेवा में समर्पित है जो दुःखी हैं, अपाहिज हैं, जो निराश्रित और उपेक्षित हैं, वृद्ध हैं और मृत्यु के निकट है। जिन्हें कोई नहीं चाहता हैं उन्हें मदर टेरेसा चाहती हैं जिनको लोग उपेक्षित करते हैं उन्हें उनका प्यार भरा विशाल हृदय अपना लेता है।

सन् 1950 में आरम्भ किए गये ‘मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी’ की आज विश्व के लगभग 63 देशों में 244 केन्द्र हैं जिनमें लगभग 3000 ‘सिस्टर’ और ‘ब्रदर’ निरन्तर नियमित रूप में सेवा का कार्य कर रहे हैं। भारत में स्थापित लगभग 215 अस्पताल और चिकित्सा केन्द्रो में लाखों बीमार व्यक्तियों की नि:शुल्क चिकित्सा की जाती है। विश्व में गन्दी बस्तियों में चलाए जाने वाले स्कूलों में भारत में साठ स्कूल हैं। अनाथ बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण के लिए 70 केन्द्र, वृद्ध व्यक्तियों की सेवा के लिए 81 घर संचालित किए जाते हैं। कलकत्ता के कालीघाट क्षेत्र में स्थापित ‘निर्मल हृदय’ जैसी अन्य संस्थाओं में लगभग पैंतालीस हजार वृद्ध लोग रहते हैं जो जीवन के दिवस की सन्धया को सुख और शान्ति से गुजरते हैं। मिशनरीज़ आफ चैरिटी के माध्यम से सैकड़ों केन्द्र संचालित होते हैं जिनमें हज़ारों की संख्या में बेसहारों के लिए मुफ्त भोजन व्यवस्था की जाती है। इन सभी केन्द्रों से प्रतिदिन लाखों रुपए की दवाइयों और भोजन सामग्री का वितरण किया जाता है।

पुरस्कार एवं सम्मान

पीड़ित मानवता की सेवा के अखण्ड यज्ञ को चलाने वाली मदर टेरेसा को पुरस्कार और अन्य सम्मान सम्मानित नहीं करते अपितु उनके हाथों में और उनके नाम से जुड़ कर पुरस्कार और सम्मान ही सम्मानित होते हैं। उनके द्वारा किए गए इस कार्य के लिए उन्हें विश्व भर के अनेक संस्थानों ने उन्हें सम्मान दिए हैं। सन् 1931 में उन्हें पोपजान 23वें का शान्ति पुरस्कार प्रदान किया गया। विश्व भारती विश्वविद्यालय ने सर्वोच्च पदवी ‘देशीकोत्तम’ प्रदान की। अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से उन्हें विभूषित किया। सन् 1962 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया। सन् 1964 में पोप पाल ने भारत यात्रा के दौरान उन्हें अपनी कार सौंपी जिसकी नीलामी कर उन्होंने कुष्ट कालोनी की स्थापना की। इस सूची में फिलिपाइन का रमन मैग साय पुरस्कार, पुनः पोप शान्ति पुरस्कार, गुट समारिटन एवार्ड, कनेडी फाउंडेशन एवार्ड, टेम्पलटन फाउंडेशन एवार्ड आदि पुरस्कार हैं जिनसे प्राप्त होने वाली धनराशि को उन्होंने कुष्ट आश्रम, अल्प विकसित बच्चों के लिए घर तथा वृद्ध आश्रम बनवाने में खर्च की। 19 दिसम्बर सन् 1979 में उन्हें मानव कल्याण के लिए किए गए कार्यों के लिए विश्व का सर्वोच्च पुरस्कार नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। सन् 1993 में उन्हें राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार दिया गया। सेवा की साक्षात् प्रतिमा विश्व को रोता छोड़कर 6 सितम्बर, 1997 को देवलोक सिधार गईं।

देव-दूत, प्रभु-पुत्री, मदर टेरेसा का जीवन यज्ञ-समाधि की भान्ति है जो निरन्तर जलती है पर जिसकी ज्वाला से प्रकाश बिखरता है। मानवता की सेवा की नि:स्वार्थ साधिका ‘मदर’ माँ की ममता की ज्वलंत गाथा को प्रमाणित करती है। वह एक ही नहीं असंख्य लोगों को आश्रय और ममता, प्यार और अपनत्व देने वाली ममतामयी माँ है। ईश्वर की आराधना में वह विश्वास करती है, उसका ध्यान करती है परन्तु उसकी पूजा उसकी ही संतानों की सेवा के रूप में करती है। उनकी पवित्र प्रेरणा से प्रेरित होकर देश-विदेश से अनेक युवक और युवतियाँ उन के साथ इस सेवा-कार्य में जुट जाती हैं। आलौकिक शक्ति एव तेज से सम्पन्न यह दिव्य आत्मा सदैव ही मानवता की सेवा के इतिहास का आकाशदीप बनी रहेगी।

मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्य और साक्षात् मन्दिर है, इसलिए साकार देवता की पूजा करो – स्वामी विवेकानन्द

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